वहम है वहम की मेरे अंदर चाहतें घर कर रहीं।।
अरे पूछो जहां से भला खिलौने का शौख क्या!?
तुमसे मुस्कुराया उसपे लतीफ़े पढ़ें खुद पे हंसा।।
लम्हा धूप का, निकाला थोड़ा थोड़ा और क्या!?
मेरी जो चाहतें हैं, ख़बर है, है, नाकाबिले बर्दाश्त।।
निबाह इश्क़ तड़पें ही ना फेर इश्क़ -ए- दौर क्या!?
यह मेरा माफ़ीनामा है, प्यार की अर्जी नही अब।।
रूह घायल पड़ी काबा में, जिसम का जोर क्या!?
तुम कोसती क्यू हो मुझको! मुझे नही है झगड़ना।।
फ़ना हूं, मेरी ख़ामोशी पर ख़ामख़ा का शोर क्या!?
J♥️
No comments:
Post a Comment