मुसलमान हूँ ना
अपने हि घर में.,
पूरखो के जमि पें.,
जिस्म के लहू से.,
अपने हि को विश्वास दिलाना
पड़ रहा.,
ऐसा न होता मगर मैं मुसलमान
हूँ ना..
अपने हि धर्म में.,
मन के आईने पें.,
भेदति अल्फाजो से.,
(धर्म – देश भक्ति)
अपने हि को विश्वास दिलाना
पड़ रहा.,
ऐसा न होता मगर मैं मुसलमान
हूँ ना..
अपने हि किताब में..
बिखरते ईतिहास पें..
तड़पते - रोते उर से..
अपने हि को विश्वास दिलाना
पड़ रहा.,
ऐसा न होता मगर मैं मुसलमान
हूँ ना..
अपने हि रार में..
बेहिसाब सवाल पें..
बिलखते जज्बात सें..
अपने हि को विश्वास दिलाना
पड़ रहा.,
ऐसा न होता मगर मैं मुसलमान
हूँ ना..
अपने हि
सूरज में..
पिले चाँद
के छाव पें..
बहते नदियो के धार सें..
अपने हि को विश्वास दिलाना
पड़ रहा.,
ऐसा न होता मगर मैं मुसलमान
हूँ ना..
अपने हि को विश्वास दिलाना
पड़ रहा.,
ऐसा न होता मगर मैं मुसलमान
हूँ ना..
..........................................(
आगे जारि )
~: ज्योतिबा अशोक
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