घी की रोटियाँ
""""""""""""""""""
बहुत स्वादिष्ट होती होंगी न
घी की रोटियाँ।
सुना हैं पकते ही घी में डाल दी जाती हैं
तह तह रखी जाती।
ऊपर नीचे के बीच में भरी जाती हैं।
फिर निकले थाली में
तो कटोरे से भर भर रखते हैं घी।
जिनमे डुबो डुबो के डालो और चबा चबा के खाओं।
घी की रोटियाँ।
मैंने देखा नही।
हमारे आस पास तो दरिद्र रहते हैं।
सोने की चिड़िया अलापने वाले दरिद्र।
बिलकुल नंगे भूखे।
प्राचीन विशाल भारत के प्राचीन विशाल दरिद्र।
सुबह रोटी मिली तो तेल से निगल लिए।
थोड़ा सबल हुआ तो रगड़ा भी नमक के साथ रख लिया।
(रगड़ा= बिहार में बनाई जाने वाली मिर्च औऱ लहसुन की चटनी)
बस हमारे आस पास तो यही हैं उनके पास और।
औरों के पास मैं, मेरे पास और।
जिन्हें हक़ नही जीने का अपने ही भारत में
अपने ही बनाये घी चखने का।
कानून हैं नियम हैं घी भी हैं रोटी भी।
नाक अलगा के सुंगधे रहो।
फिर मौत आये मर जाओ।
तुम्हारे बच्चे कहेंगे
जैसे तुम तुम्हारे बाप तुम्हारे दादा तुम्हारे दादा के बाप कहते आये।
बहुत स्वादिष्ट होती होंगी न
घी की रोटियाँ।
~: ज्योतिबा अशोक
No comments:
Post a Comment