देशद्रोही
उसने पूछा मित्र हमारे देश के बारे में तुम्हारा क्या ख्याल हैं?
मैंने पूछा सच बोलू?
देशद्रोही तो न कहोगे?
उसने कहाँ सच ही बोलना होता तो तुमसे क्यों पूछता?
मैं उसे देखता रह गया।।
उसने लम्बी साँस ली और कहा।
मित्र एक सरकार हैं वो गली गली घूमती हैं घर घर में अपना सरकार बनाने को।
मित्र एक विपक्ष हैं बस विपक्ष हैं क्या कहूँ?
अजीब देश का बड़ा गरीब विपक्ष हैं।
एक ऑफिसर हैं, जो हर झोपडी में पुलिस भेजता हैं।
मित्र,
देश घाटे में डूबा जा रहा हैं।
हाँ एक पुलिस हैं जो रिक्शे वालो से सरकारी टैक्स वसूलता हैं।
एक डॉक्टर हैं जो जमीनें, नन्हें पैरो के पायलों को बिकवाता हैं।
मित्र, घबरो मत तुम्हारे ही बिरादरी का हूँ।
मैं भी देशद्रोही ही हूँ।
पगले चुप क्यों हो? कुछ बोलो इंक़लाब मर तो सकता है खमोश कैसे हो गया?
मित्र, इतना जानते हों एक बात और बताओगे?
हाँ पूछो।
क्या सच कोई गौतम था? क्या कोई महावीर गली गली घुमा करता था?
क्या कोई अशोक था जिसने राज को त्याग दिया? क्या कोई अकबर था सच में सच में!!
जिसने भारत को गढ़ा!
क्या धोती लाठी वाला हाड़ माँस का चलता फिरता इंसान रूपी कोई गांधी था?
क्या कोई अम्बेडकर था जिसने संविधान गढ़ा?
क्या कोई राजेंद्र जिनन्ह था?
क्या तुम्हे लगता हैं कि कोई सुभाष चंद्र-शेखर भगत जवाहर पटेल इंद्रा शास्त्री था?
मित्र।। मित्र।। मित्र कहाँ खो गए?
सपनो में हूँ।
रुको जगाओ मत सुनहले भारत में हूँ परेशान न करो।
तभी बगल में धाये की आवाज चली।
सारे सवाल जवाब को छोड़ कर एक ठेले वाला प्राण त्याग गया।
दोनों मित्र अपना अपना मुंह लटकाये चल दिए।
और कहे
एक लोहिया था जल्द ही अख़बार का देवता बन नींद के किताब का पात्र बन जायेगा।
हाँ।
एक जनता थी। एक जनता हैं। एक जनता होगी।
इससे ज्यादा और कुछ न होगा की,
एक जनता थी। एक जनता हैं। एक जनता होगी।
मित्र चलो अब।
हाँ देशद्रोही चलो।
~: ज्योतिबा अशोक
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