एक समझौता।।
ये क्या रोज रोज का तमाशा किये हो?
छिटक देते हो खून कोरे कागजो पे सुबह सुबह।
एक काम करोगे!
तुम दोनों समझौता क्यों नही कर लेते?
सफेद टोपी पहने एक लंबी तलवार तुम लेते आते नारंगी गमछे से अपना सर बंधे दूसरा वैसी ही एक ही दुकान से खरीदे एक और तलवार लेते आता फिर घपाक घपाक।
एक दूसरे के पेट में उतार देते।
तुम्हारा कलेजे का टुकड़ा मस्जिद के सीढ़ियों से तुम्हारी ताकत देखता तो दूसरे का लाल सीढ़ियों से चिल्लाते बिलखते तड़पते भागते गिरते आता।
और तुम मुस्कुराते अपनी अपनी जीत पर।
तुम्हारी बेवा औरते नाचती तुम्हारे कफ़न को इस दरवाज़े से उस दरवाज़े।
वहसी नजरे गड़ाई जाती और वो हंसती हुई फिर आती फिर आती फिर आती काश आज कुछ मिल जाये।
तुम्हारे धर्म के ठेकेदार तुम्हारे ही बच्चों से अपने घर में पोंछा लगवाते और तुम।
बचते कहाँ? जो देखते!
तुम तो स्वर्ग जन्नत की सैर कर रहे होते है न।
एक और रोज खोलू?
हमे भी सुकून हो जाता रोज रोज के दंगों से एक दिन खूब रो गा चुप हो जाते उम्र भर के लिए खुश इमतानं सुकून चैन।
एक ही समझौते की तो बात है।
कर क्यों नही लेते?
एक समझौता।।
राजवंशी जे ए अम्बेडकर
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