-【 भूख 】-
उधर बज रहे हैं बर्तन
इधर लड़को की भी नजर रास्तों पे ही है
अधमरे बुड्डा बुड्ढी भी हाल चाल के बहाने कई बार आह ले चुके।
मालकिन! हां मालिकन तो ही न! कहने भर की हुई तो क्या?
इसने भी पचासन बार चूड़ियां पटक झनक ली है।
कल निहार रहें कब आएंगे! झूठे बरतन
कौवा भी कई दफ़ा आंगन लांघ गया है बिल्ली भी ताक में हैं अब तो अब बस अब
शहर से आएगा वह धँसे गालों वाला नौजवान जिसके मुहं से बोलते बोलते हवा निकल जाती है।
वह आयेगा कल सा फिर से धूल में धंसा रसियों से बांधे अपने चपल्लो को
बालों को खुजाता कभी, कभी अपने गमच्छे को झटकता।
सुबह की भूख जो जल भून गई है पानी के आग से
वह राख भी उसी के ताक में है
वह आये।
मैं फिर से पानी को धत्ता बता दूँ।
ये बच्चे जो खमोश है रोज की तरह इन्हें फिर से रुला दूँ
थोड़ी तो आवाज दूँ सास पतोहू में
थोड़ा जान बुड्ढे में भी भर दूँ।
यह कौवा जो यही का है यही आ जाए
बिल्ली के बहाने कुत्ता भी अपना अधिकार जमाने आ जाए।
कब तक रहूं अधमरा मैं!
भूख हूँ लेकिन मैं भी तो हूँ भूखा!!
क्या मेरा सब्र न टूटेगा?
बांधे तो हूँ मैं खुद को परन्तु पूंजीपति तो नही डोंगी भगवान(दाता) तो नहीं जो यह सब देखूं ही न!
मैं रोऊंगा और पसर जाऊंगा दिन भर के चुप्पी के बाद
वह आएगा जब, लेकिन वह आएगा कब?
अरे देखो वह आ रहा है आ रहा है आ रहा है चलो लिपट जाऊं उसके पेट से कहीं उसकी कल हड्डी झुक न जायँ।
अभी उसे तो कई दशक जाना है जब तक यह दुधमुंहा बच्चा उसके जैसा ही नौजवान न हो जाए।
बिल्कुल उसके जैसा।
चलो जल्दी।
राजवंशी जे. ए. अम्बेडकर
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