पिंकू अविरल और उनका प्यार 1

..()मुझे कभी कभी अपने शहर से चिढ़ हो जाती है उत्पात के सिवा हमारे पास कुछ नही है..विद्यर्थियों को मूर्क बनाने के लिए 4 स्कूल की 5 किताबें हैं और लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए 4 धर्म के 32 करोड़ तस्वीरें... एक बार #मुजहिरनामा खरीदने चला मिला नही शैलेन्द्र नही मिले शाहिर नही मिले आज तो बिरसा मुंडा की तस्वीर तक नही मिली😢().. खैर चलता है सब इसी में ..

-- 【 प्यार पिंकू और अविरल 】 --

उठते हुए मोह्हबत के सीढ़ी पर चढ़ते हुए हम अपने नजरों के ऐसी खाई में गिर चुके होते हैं जहां होता है एक बड़ा सा कब्र।
     वहां हमारे ऊपर तैयार होता दूसरे के एहसान और हमारी ही तरह उसके बेहया के ईंटे और हमारी अंशुओ से सना तन्हाई का मकबरा। जहां से हम जोर लगा कर अगर निकल भी जाए तो देह तो सलामत रहती है लेकिन रूह टूट जाती है और साथ रहें भी तो साथ रहने का कोई मतलब नही रहता।
      जब जब मोह्हबत चाय के प्याले, सिगरेट के धुएं से गुजरते हुए बिस्तर तक पहुंची है उसका हस्र यही हुआ है फिर भी ताज्जुब है हजारो सालों जो होता आया वो अगले हजारों सालों तक होता रहेगा।
      प्रेम मुहब्बत जुनूनीयत आशिक़ी अलफाज़ भले ही अलग अलग शब्द रहें हो लेकिन सभी शरीर के गोस से शुरू होकर तन्हाई के आगोश में खत्म होतें हैं।
      ---- पिंकू अविरल का मोह्हबत भी आंखों के समंदर होते हुए होंठो के लस-लसाहट को पार कर न कह पाने वाले स्तिथि में पहुंची। ऐसी स्तिथि में दोनों ने ही एकदूसरे को धक्का दे कर पीछे धकेलना ही बेहतर समझा।
        मोह्हबत पागल पंक्षी का बिगड़ैल नाम..
        यहां बचने की कोई गुंजाइश नही होती आपको गलती करना है कम करना है ज्यादा करना है अभी करना है बाद में करना बस इतना ही तय करने का अधिकार है वो भी हमेशा नही!
         एकदूसरे के द्वारा धकेले हुए देह अपने पांव से फिर से पास आ गए थें। हाथ जहां एक दूसरे के पीठ को भींच रहें थे तो वही सर एक दूसरे के कंधे में समाय जा रहें थें।
         अरे यह तो सामान्य है।
        कस के मुट्ठी बांधे बाह फिर से छूटी.. पैर फिर से पीछे गए.. उठते गिरते सांसो का अंतर साफ साफ था.. जो स्थिर थें होंठ उनके कंपकपाहट दिख सकतें थें। पल भर पहले जो सब कुछ बेचैन था सिर्फ आंखे स्थिर थी पल भर बाद सब कुछ स्थिर था और आंखे बेचैन थीं।
         टप टप करते गर्म आँशु ठंडे पड़े गाल से होते हुए नीचे गिरने लगे और येन वक़्त पर जब चारों हाथो (दो तुम्हारे दो तुम्हारे अपने) को काठ जकड़ ले तो किसी नाले समंदर पहाड़ मेज कमरा दरवाजा दिवाल किसी को भी गले लगा लो बशर्ते किसी जीव को छोड़कर।
        कभी कभी बेमतलब का रोना जरूरी हो जाता है।
        पिंकू अविरल दोनों के सहमति से बढ़े इस पाव में आखिर क्यों डगमगाहट बार बार रोड़े बने खड़ी थी? कोई डर बिछड़ जाने का...?
         जब हमें डर लगता है तब हमें एहसास होता है डर वाजिब होता है और असल मे डर का मतलब क्या होता है?
         पिंकू और अविरल दोनों इश्क़ में मशगूल थें दोनों ने समाज के कई बेड़ियों को तोड़ रखी थी। लेकिन अब भी एक ऐसा बंधन था जिसे तोड़ पाना आसान नही था शायद मुमकिन ही नही था।
            एक दूसरे के बाहों में लिपट कर रातों को काट लेना मुहब्बत नही होती। यह तो दोनों ने तय कर रखा था लेकिन इसके बिना भी चलना मुनासिब कहाँ?
           इससे अलग देह से शब्दों से जिंदगी तो नही चलती न! ऊपर से समाज!!
            कुछ बेड़ियां थीं जिसे थोड़ा न जा सका। कुछ बेड़िया थीं जिसे थोड़ा न गया। हाथ काठ के बने रहें..मुहब्बत मोम बना रहा जो धीरे धीरे जून जुलाई के तपीश में पिघल के पसर जाता और दिसम्बर जनवरी के ठंडक में सिकुड़ कर जमता रहा।...
                           (आगे अगले अंक में.......)

Jyotiba Ashok
              

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