एक एक कर उड़ाई जा रही
संविधान की धज्जियां
मानव चीखों से भरी पड़ी है
कोटि कोटि बस्तियां
मैं मूक दर्शी बना
तुम्हारे लिए प्रेम लिखूंगा..
होगा धुंआ जलते हुए शहर का
मैं काली केशुओ को लिखूंगा
महक रहा होगा
अख़बार खून के धब्बो से
उसमें रह के भी मैं
मैं तुम्हारा सौंदर्य लिखूंगा
और जब आएगी कोई तलवार
आएगी जब कोई पुलिस की बर्बता
तुम्हारे ओर
जब कोई गोली बढ़ेगी बेनाम की
जो चिर जाएगी
तुम्हारे शरीर को
मैं विरह लिखूंगा
जब तक कोई मुझे भी छलनी न कर जाए
Jyotiba Ashok
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