टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली
जिसका जितना आँचल था, उतनी ही सौगात मिली
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......मिना कुमारी
() "ज़िन्दगी मीना कुमार सी हो गई है वक़्त आग से चमकते सोने पर चल रहा है और मैं सोने से चमकते आग पर।।" कुछ वर्ष पहले मीना को पढ़ते पढ़ते समझते देखते हुए यही ख्याल आ गए! जिन्हें मरने की फुर्सत नही थी वह गम में जिये जा रही थीं जिंदगी यही है कि कांच पर चलो और कांच रंग जाए तो घर के दिये बुझा दो..आदमी तन से तन्हा होता है तो महफ़िल का तलबगार होता है आदमी मन से तन्हा होता है तो खुद की भी प्यास नही होती।()
कमीज के ऊपर वाले जेब में बिंदी की डिबिया थी
तो पैंट के दाहिने जेब में सिगरेट का डब्बा
उस रोज
दोनों हाथ पैंट के जेब मे डाले सड़क पार करते हुए
बहुत खुश था
सोच रहा था कुछ
पहले से भी
तुम्हारे बारे में कुछ सोच रखा था।
आज सांझ जब मिलेंगे
तो लगा कर यह लाल बिंदी तुम्हारे माथे को चूम लूंगा
हालांकि मुझे पता है
तुम्हे यह सब पसन्द नही!
तुम्हारे ख्याल आधुनिक है
तुम सिगरेट के छल्लों में उड़ा देना चाहते हो
हर वह बात जो तुम्हें खलती है
अरे बाबा,
इसलिए तो लिया है न
सिगरेट का डब्बा!
वरना कभी मुझे देखे हो मुझे सिगरेट थामे
देखे हो कभी...
इन होंठो पर तुम्हारे होंठो के सिवा किसी और चीज़ का निशान?
अधूरा ही😢 रहने देतें हैं।।
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