((बीते एक माह में जो कुछ हमारे ज़िन्दगी में हुआ उसका विवरण क्या करें! बस इशारों इशारों में कहे तो शुरू से एक अनुभव था जो और भी पक्का हो गया 'आपके पास अपना अंदुरुनी साथ में दिखावटी ताकत न हो न तो आपको आपकी परछाई भी डराती है' खुशी यह है ऐसे वक्त में भी पढ़ाई सही से हुई फिर से जल्द ही लगना है अभी बचा खुचा आराम आराम से इधर उधर देख रहा हूँ।
धारा 377 पढ़ना है (सिलेबस) उसी के विश्लेषण में एक नाम याद आया 'प्रो. सिरास' उनके बारे में पहले भी पढ़ा था। (महिला नाम भी है) प्रो. सिरास को पढ़ने(निजी जीवन) समझने के बाद एक बात बहुत सही तरीके से समझ आई जीवन के लिए फिजिकली अटैचमेंट हो या न हो मेंटली अटैचमेंट चाहिए ही चाहिए होता है फिर वह जिस रूप में हो!! मेंटल अटैचमेंट न होने पर ही साधु शांत/आम जन जबरदस्ती के तरफ रुख करता है! तो कुछ चुनाब करतें हैं समलैंगिकता का!! लम्बी पोस्ट है बहुत सारे तर्क है...फिर कभी..........377 से प्रो के हत्या को समझते समझते कविता बनी 'मृत्यु क्या है!' पढ़ें आनंद लें बताएं।))
मृत्यु क्या है!
धर्म के इर्दगिर्द यह चाहे जो हो
इसके मायने चाहे जो गढ़े गए हो
सामान्य जनों के लिए इसका एक ही मायने है
'सब कुछ खत्म'
खत्म वो आशाएं
जो भूख मिटने की ललक थी
जो कल के रोटी के रूप में थी
किसी की फीस थी
किसी का किराया
किसी बच्ची की शादी थी
कोई बच्चो के नए कपड़ों के चाह में
अपनी जिंदगी के जंजीरों को खिंचे जा रहा था
और अब बस थोड़ा और
मर जाने की लालसा में भी
उल्टी सांस ले ले कर नब्जों को बचाए रखता है
आम जन भाषा में मृत्यु विपदा है
घोर संकट है
या फिर है 'एक उल्लास'
बूढ़े या अपंग हो चुके शरीर के विदाई का।
विद्वानों के व्याकरणों में
मृत्यु भले ही स्वाभाविक हो
लेकिन क्या यह है स्वाभाविक!
इसमें स्वाभाविक जैसा क्या है
सामान्य जैसा क्या है
क्या इतना भर की एक दिन तय है!
सिर्फ इसलिए कि प्रकृति ने चुना
या यही प्रकृति नियम है इसलिए!
तो फिर उन आशाओं का क्या?
जिनका जन्म तो प्रकति ने दिया
लेकिन उसे अधर में ही छोड़,
पूरक को ही निकाल दिया!!
दरअसल
मृत्यु एक साजिश है
जिसका कातिल गुमनाम है
और प्रकृति आस पास की व्यवस्था
बदला लेने को
अपने वर्चस्व को कायम रखने वाली
खूंखार व्यवस्था।
J❤️
No comments:
Post a Comment