खैर...., किसी ने कहा था दुनिया ऐसे ही चलते रहनी है और फिर किसी दिन खत्म हो जाएगी और किसी दूसरे ने कहा था लिखते रहो कभी कहीं तो पढ़ी जाएगी!!
।
नाउम्मीद के समंदर में उम्मीद की नाव है।।
हमें डूबा कर भी तू हार जाएगा ए समंदर।।))
--- 【 काश की तुम जानवर होते!! 】 ---
टीम बड़े सहनशील हो
क्या करोगे आदमी हो न!
मत्थे पर सभ्य का ठप्पा लगा है
सभ्यता निर्माण का जन्म जन्मांतर का ठेका ले रखा है
तुम तैयार हो
दुनिया मे शांति स्थापित करने का जिम्मा लिए
खुद की आवाज, खुद ही सुनने के लिए
तुम प्रयासरत हो
भूख न लगने की दवा खोजने को लेकर
अरे अभागो,
प्रकृति के श्रेष्ठतम जीव का तमगा लिए मूर्खो
साधु संत शांति सादगी
इंसान की परिभाषा के पीछे
छिपे कायरों
ज्यादा न सही अच्छा, ठीक। बेहतर। बहुत बढ़िया।
परन्तु,
अपना हिस्सा तो लो!
प्रकृति ने जो जितना तुम्हारे लिए बनाया है
उसका तो उपभोग करो!
कम से कम वह तो पाओ जिसे तुमने उगाया है।
उसमें तो रहो जिसे तुमने बनाया है।
वह पहनो जिसे तुमने बुना है।
मिलों जमीन पर फैले फसलों पर दो कमरों का एकाधिकार है जिसमें करोड़ो करोड़ो देह गल गए
पाव पत्थर हो गए रीढ़ टूट गई जिस पच्चासी मंजिलों के इमारत को बनाने में उसकी परछाई तक नसीब नही!
कमाल है कमाल यह भी है
जिन कपड़ो के बनने में उंगलियां छलनी हो गईं उन्ही को बांधने को रुई नही है!
और तुम हो कि इंसाफपरस्ती की मुरैठा बंधे घूम रहे हो
यह कैसी समझदारी है बोलो!
क्यों नही लड़ जाना चाहिए भाई से भाई को, घर से घर को, जिला से जिला को, राज्य से राज्य को, देश से देश को..
बताओ
है कोई वजह
जब छीन ली गई है जीवत रहने के सारे अधिकार
फिर कैसे रख लेते हो जीने की उम्मीदें!
ईतनी सहनशीलता!
आखिर लाते कहां से हो!!
काश की तुम जानवर होते!!
J❤️
No comments:
Post a Comment