-- 【 सरकार 】 --
मुहं में उंगली डाल कर हमारे गलफड़े को खींच दिया जाता है
और कल के अखबार में तस्वीर निकलती है
ये देखो हंसता चेहरा
जिसमें हमारे तने हुए होंठ तो होतें हैं
लेकिन उंगलियों के निशान नही होतें
और न ही होतीं हैं पेशानी पर बनी दर्द की लकीरें
आँशु होतें हैं
लेकिन उसे खुशीयों की मोती बता कर
हर शाम के tv डिबेट में ठहाके पर ठहाके मारे जातें हैं
अखबार के नाम पर हर सुबह
खून से सना लोथड़ा आता है
और ब्रेकिंग न्यूज़ के नाम पर होती है जिस्म की नुमाइश
जिसे दलित शब्द का भान नही वह दलित चिंतक है
और जिसका अपना मकान भी भाड़े की जमीन पर बना हो
वह किसान हितैसी है
जिस औरत के करीब औरत तक की पहुँच नसीब न हो
वह भी बस की वह प्रताड़ित महिला है
जिसने बस जैसे प्राणी को अपने लक्सरी सीसा के पार से देखा है!
सब परेशान है सब हताश है सब निराश है
मगर ये, ये सबसे ज्यादा है
ये वो बीमार लोग है जिनके नाको में गरीबों के जिस्म पर पड़े धूल से एलर्जी नाम की रोग लगी हुई है
देश महान है और क्यों महान है
यह आज का सबसे भूतिया सवाल है!
इस सरकार को गरिया के
उस सरकार में रोने वाले लोग
जो बाटा के जूतों में भी खुद को आम दिखातें है
असल में इनके धर्म की तरह इनकी कोई सरकार भी नही होती
आम लोगों की सरकार भी आवाम की नही होती
फिर वह सरकार आज की हो कल की हो
और फिर वह 'कल' कैसा भी कल हो!
सरकार तो सरकार होती है
'सरकार' तो सरकार होती है।
Jyotiba Ashok
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