(((राजनीति के मलबे में से एक लाश को निकालने के लिए हमनें भी कभी एक कोशिश की थी। उस कोशिश का नाम था।
"पिंकू, अविरल और उनका प्यार,,
एक किताब शुरू की थी हमनें बेवफाई में पड़े मुहब्बत के किस्सों को बताने की। जिस कहानी को हमनें गढ़ा था उसमे सब कुछ अजीब थी और इतना अजीब की इसका अंत भी होते होते शायद हो!
दरअसल, यह कहानी एक ऐसे मोड़ पर पहुँच गई है जहां से लिखना मेरे वर्तमान दौर के खिलाफ है। हाथ में बंधी घड़ी के डायलों में चाहे जितनी सुंदरता आई है। मगर सच तो यही है घड़ी की सबसे खूबसूरत सबसे बड़ी छड़ी बेढंगी सी बहुत लंबी और छोटी छड़ी इतनी छोटी हो गई कि नगण्य ही हो गई है। अभी तो मुझे नही लिखना और मुझे पक्का यकीन है ऐसे शब्दों में कारण कोई जान भी नही सकता। सच तो यह है अभी मुझे किसी को भी बताना भी नही है। हां जिस दिन पूरा करूँगा आज के दिन को पूरा करते हुए यह अबूझ पहेली भी सुलझा दूंगा।
अधूरी किताब कहना चाहिए मुझे या उपन्यास! जो भी जिस दिन पूरा होगा सोचेंगे अभी कहानी ही कहतें हैं।
वैसे लगाई गई तस्वीर के साथ भी एक कहानी है। हंसती हुई चन्द लाइन के लिए जगह बची पोस्ट काफी लंबी न हुई तो! जरूर पेश की जाएगी।☺️😊☺️)))
अब आगे...
--- 【 "पिंकू,अविरल और उनका प्यार" 】 ---
..........तुम्हारी बेवज़ह की हरकतों पर सचमुच मरना
..........बेवज़ह ही मार गया तेरे सचमुच के हरकतों ने
❤️
■अविरल -- आप ग़लत इंसान से मुहब्बत कर बैठे हो जानेजां। देख लेना एक दिन हमारे इश्क़ में आपकी जान जाएगी और फिर मैं न मर पाऊंगा न जी पाऊंगा न ही खुद को माफ कर पाऊंगा।
■पिंकू(गुस्से में तमतमा के लाल हो जाती है) -- पहली बात तो यह की आप होतें कौन हैं खुद को खुद ही जस्टिफाई करने वाले? बड़े आए!
जज बने फिरते हो। क्या तुम चोर हो? डाकू हो?? हत्यारे हो??
दूसरी बात यह कि कैसा आपका इश्क़! कौन सा इश्क़! यह इश्क़ मेरा है याद रखा करो। दुबक के दूर से देख के आया जाया करते थें हमनें शुरुवात की थी इसे और यह जैसा भी है गलत है न! जैसा भी है, मेरा है और बेहतर है।
■अविरल -- बस बस बस कितना बिलेंगी!? और लोग भी हैं यहां सब हमारी ओर ही देख रहें हैं।
■पिंकू -- हां तो ऐसी बाते क्यों करते हो?(थोड़ी शर्मिंदगी भरी) वैसे ज़नाब पहली खुद की तो जान बचा लीजिए हमारी इतनी भी फिक्र न करें कि आप ही बीमार पड़ जाएं..(एक दूसरे के और भी करीब आ जातें हैं दुनिया को भूल के)
■अविरल -- क्या मतलब?
■पिंकू -- हमारी जान आपके सीने में बसती है और जब तक यह धड़केगा न (लेफ्ट साइड के सीने पर उंगली रखते हुए) हम सलामत है।
■अविरल -- आप पागल हो, पूरे के पूरे पागल।
■पिंकू -- हां
((कुछ देर की खमोशी। ढलते ठंडे पड़ते सूरज और सरसराती मद्धम मद्धम हवा में अपने शरीर मे एक दूसरे के हथेलियों पर एक दूसरे के हथेलियों से गर्मी पातें दूर बहुत दूर देखने की कोशिश में चले जा रहें हैं।))
■अविरल -- आप ऐसी किताबी बातें क्यू करती हैं? अच्छी तो लगती है लेकिन यह आपको अच्छे से मालूम है ऐसा कुछ नही होता। किताब कभी भी जमीन पर उग कर फल नही दे सकती और जमीन, हल फावड़े से जुत खुद कर सोना तो उगल सकती है मगर किताब नही बन सकती। जिस प्रकार सच, सच होता है और झूठ, झूठ होता है ठीक वैसे ही किताब, किताब होती है। एकदम अलग एकदम जुदा। जिसमें सच जैसा कुछ भी नही होता लेकिन सच के बल पर छुपा झूठ, झूठ भी नही होता। यहीं हम सब अपनी ही लिखी लिखावाट से मात खा जातें हैं।
(इतना बोल कर अविरल चुप हो जाता है और पिंकू भी कुछ सोचने लग जाती है।)
■पिंकू(एक लंबी सांस लेने के बाद) -- आपको क्या लगता है सच एक आप ही जानते बोलते हैं मुझसे, मैं नही जानती मैं नही बोलती?
■अविरल(एकटक चलते चलते पिंकू को देखता है) -- हम कोशिश तो यही करतें हैं कम से कम आपसे झूठ न बोलें। नही, मैं तो सिर्फ अपनी बयान कर रहा था। मुझे पूरा पूरा बल्कि खुद से ज्यादा एतबार है आपके ऊपर। कौन लड़की होगी जो खुद पाव बढ़ाए! वह भी पूरी दुनिया के टिका टिप्पणी को ठुकरा कर!!
■पिंकू -- क्या इतना भर काफी था आपके एतबार को जीत लेने के लिए
■अविरल -- तो?
■पिंकू -- फिर तो मैं ख़ामख़ा आपके पीछे अपने शहेलीयों को लगा रखी थीं!
(दोनों ठहाके मार के हंसने लगतें हैं)
■पिंकू -- आप बहुत भोले है जनाब। हहह आपके भोलेपन पर तो हर एक रोज एक लड़की चौखट फांद जाए।
फिर तो आपका एतबार, एतबार न रह कर दिल्ली का तख्त ए ताऊस है।
(किसी रानी के फरमान की नकल करते हुए) जिसे जब मन हो आओ चौखट फांद लो, लो जीत गए! आओ विराजमान हो और जिसे भी जी करें आओ पूरा तख्त ए ताऊस उठा ले जाओ।
■अविरल -- आप बिगड़ रहीं हैं।?
■पिंकू -- अरे नही जी। आप वह चीज ही कहां जिससे खफा होना भी मुनासिब हो बस समझाने की कोशिश है।
इश्क़ जिंदगी को जिंदा रखने की दवा है मेरबां। देखिए न उधर मरने के लिए एक लंबी कतार लगी है।(एक तरफ इशारा करते हुए) भेड़ बकरियां गाय बैल उसमें आदमी भी है! सब मरने के लिए जी रहें हैं भाग रहें हैं किसी को फुर्सत नही यह तक सोचने के लिए की इतनी तैयारी और सिर्फ मर जाने के लिए!?
((अविरल बस पिंकू को देखता रहता है। एक साफ और अच्छी जगह देख कर दोनों बैठ जातें हैं))
■पिंकू(वापिस से) -- जानतें हैं जनाब अगर आप अपनी तरह के सच होतें न तो आप भी कहीं हरिश्चन्द्र की तरह एक दिन काल में समाने के लिए दुनिया से लड़ रहें होतें।
फिर आपके सामने कोई लड़की किसी को लात मार के आए, चौखट लांघ के आए या बिना कपड़ों के आपको सम्मोहित करने आए आप पर कोई फर्क नही पड़ता।
हम सब झूठ बोल रहें है। बल्कि हम उन झुंडों से ज्यादा झूठ बोल रहें हैं तभी इश्क़ में हैं। वरना हम भी कही कतार में खड़े होतें। तैयारियां कर रहें होतें रोज सज धज के मुस्कुरा के अपने बच्चों के गालों को थपथपाते, अपने बीवी/पति के गालों को चुम कर निकलते। सोचतें न जाने कौन सी घड़ी, घड़ी रुक जानी है!
■अविरल -- सच झूठ जो भी हो लेकिन इस झूठ में भी कम से कम निर्वस्त्र हो कर तो कोई लड़की मुझे सम्मोहित नही कर सकती (आंख मारते हुए) खुद आप भी नही।
पिंकू -- ओ..ओएहोय मरजानियाँ कभी शर्ट तो उतारों फिर देखों मेरा.....जादू।
(दोनों हंसने लगतें हैं। सूरज गिर चुका है। धुंधली सांझ रात के स्वागत में खड़ी है)
■अविरल -- इजाजत हो तो अब चलें! वरना आपके पापा की पुलिस वैन उठाने आ जायेगी। हहह
■पिंकू -- पक्का चलें न!
■अविरल -- हां, घर चलें वह भी अपने अपने।
■पिंकू -- हाय जालिम!!
पहले गोलगप्पे खा लें?
J❤️
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