"पिंकू, अविरल और उनका प्यार"

जब सुननी होगी तुम्हारी आवाज़े
मैं यहां आया करूँगा कभी कभी
जब तुम आओगी मेरे ख्वाबो में
मैं यहां आया करूँगा कभी कभी
देखने परछाई और लिपटी खुशबू
खनक, कहकहे मस्तियां शैतानियां
जब भूलने लगूंगा तुम्हे कभी कभी
मैं यहां आया करूँगा कभी कभी
बैठ जाया करेगा दिल सोच के तुम्हें
नाराजगी तुम्हारी पाने, हौले हौले
गुनगुनाते छिपते छिपाते आप से
मैं यहां आया करूँगा कभी कभी

--【 "पिंकू, अविरल और उनका प्यार" 】--

    हमने हार चुके अपने तमाम लड़ाइयों में से अब भी किसी मुहाने पर इश्क़ और इश्क़ से होने वाले जंग को बचाए रखा है। जैसे मौत और जिन्दगी की दीवार पर झूलती चन्द सांसे। लौटने का कोई रास्ता नही बस लड़ाई लम्बी चले उसी में बेचैन खस्ताहाल होते हालात को चैन है।
     एक रोज 'मैंने' एक ख्वाब देगा था एक नदी निकलती है मचलती खिलखिलाती जिसके धीरे धीरे दो पाट बनते हैं।
    वही ख्वाब दूसरे दिन आया 'हमनें' देखा कभी बाएं कभी दाहिने मुड़ मुड़ के दुनिया के आंखों में अपने निश्चल जल से धूल झोंकने वाली नदी असल में अपने दोनों पाटों को मिला देना चाहती है।
    उफ्फ तैबा, सहर का ख्वाब  माने जिस बला को हम हक़ीक़त बनाये अपने शर्ट के अधटूटे बटन में बड़े पेंचीदगी से गुंथे जा रहे थें उसमें एक और भी कड़ी थी।
     हमारे जागते आंखों ने सूरज के तपिश में एक और ख्वाव देगा।
      जब चांद बादलों के हवा से बहा जा रहा था सितारे गजरे में उतर कर झिलमिला रहें थें हमने देखा हम दोनों ने देखा दुनिया जहां को धूल झोंकने वाली मदमस्त नदी हार जाती है। गिर जाती है एक ऐसे खाई में जहां कोई अंत नही कोई पाट नही कोई कोलाहल नही कोई मिठास नही।
     बस दूर दूर तक फैला नमकीन पानी, जमीन नमकीन, आसमान नमकीन, रेत के कण कण अलग थलग पड़े ढहे जिनसे दिल्लगी की कोई उम्मीद नही।
     ख्वाब की यह कड़ी भयवाह थी, हमें कंम्पा देने वाली थी, हम दोनों डर से कांप रहे थें लेकिन दोस्त यही कड़ी सच थी।

          ★■◆●◆■★
पिंकू : हो गया! या अब भी कुछ है।
अविरल : शुरुवात तो यही से है इसे ही कुछ लोगों ने इम्तेहान का नाम दिया है।
पिंकू : किन्हीनें? उन जाहिलों ने हो निभा न सकें तो इम्तहान रूपी तस्वीर लगा कर उसकी माला जपने लगे!
अविरल : अच्छा तो तुम ही बताओ क्या हम सब नदी के उस आखिरी पड़ाव की तरह नही है!
पिंकू : सो तो है लेकिन यह भी तो देखो हम नदी के उस दो पहले पड़ाव के तरह भी तो हैं! और जब तक हैं! हैं। जब नही तो नही
अविरल : क्या इतना आसान है? अंजाम का आईना सामने पड़ा हो और हम एक दूसरे से लिपटे एक दूसरे के गीतों में शुर मिलाएं?
पिंकू : आसान तो नही लेकिन दूसरा रास्ता भी तो नही! या तो हम उस खत्म हो जाने वाली दीवार से बेखौफ टकरा कर अपनी सफर पूरी कर सकतें हैं या अलग अलग बिछड़ कर खुद को बचाए रखने के जिद में मर सकतें है।
अविरल : यह सब तुमने कहां से सीखा! कितनी आसानी से लांघ जाती हर उलझन को जैसे यह उलझन नही तुम्हारी केशुयों का लट हो जिसे जब जैसे चाहा सुलझा लिया।
पिंकू : लांघने से ख्याल कुछ लांघा था हमनें बस आगे की डगर चुभती गई मैं सीखती गई और हैं इतने भोले भी न बनो।
अविरल : अरे बाबा शांत
पिंकू : बिल्कुल भी नही जब तक....जब तक.........

J❤️

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