लम्बे अर्शे के बाद......
ज़ुरूरत से नहीं, न, जुर्रत से होती है
यह मुहब्बत, तो बस ऐसे ही होती है
मुल्तवी होतीं हीं हैं तमाम सारी तारीख़े
मुलाकातें यहां इत्तेफ़ाक से ही होती है
रिश्तों के दफ़्तरखाने के लिए हैं पैमाने
बगावत तो सर -ए- बाजार ही होती है
मायने हैं चेहरों के लेकिन उतना भी नही
चांद सितारों में भला बनियागिरी होती हैं!
की लाओ दिल, की अपनी जान लिख दूँ
यहां जिस्म की बिसात ऐसी ही होती है
जहां को लगे जो झूठ वही तो है हक़ीक़त!
हौले हौले नही, हौले से इश्क़ जवान होती है।
J❤️
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