लाश पर जन्मी मुहब्बत का सच

((जब मौत असहाय हो जाती है तब मन मर जाता है। जब मन मर जाता है तो दिल मुहब्बत कर लेता है और जब दिल मर जाता है तो आदमी के ज़िन्दगी और जिंदगी से वास्ता खत्म हो जाता है।
     यह सब कुछ धीरे-धीरे, एक एक कर के होता है जैसे कोई दुश्मन हौले हौले से गले पर छुरा चला रहा हो कभी बाएं कभी दाएं के धारों को मिलते हुए।
    हमें मालूम तो होता है कि छुरा गले को रेत रहा है लेकिन दर्द नही होता, दर्द नही होता तो आँसू भी नही आतें।))

-- 【 लाश पर जन्मी मुहब्बत का सच 】 --

बूढ़े जबड़ों का फिर भी इलाज है
न भी हो तो ख्वाहिशे अपने लिए बचती भी कहां हैं!
जवान दाँतो के फांक से
बार बार शब्द आयाम लेने के पहले ही निकल जाएं
तो डर लगता है
और चिल्लाने को जी करता है
देह के अंदर मची शोर आदमी के मन को मारने लगती है
फिर लाशों के ढेर में जन्म लेती हैं 'मुहब्बत'
अनन्त के अंधकार में एक रत्ती जितना सफेद पत्थर भी रख दो
तो ऐसा लगता है हीरे की खान हो
लेकिन कब तक! कितनी दूर तक!! कहां तक!!!
अब तो अनन्त का भी अंत है।
'सच' की खोज में,
हमने उन सभी चीजों का भी खोज कर लिया जिसकी जरूरत न तो हमें थी न ही सच को
दो डब्बे के खानों में सच और झूठ को रखने के बाद हमनें पाया
सच का डब्बा सिर्फ प्रकाश से भरा था वो भी किसी दूसरे के उधारी पर!
प्रत्यक्ष देख शून्यता का चुनाव बेहद मुश्किल है
यह जानते हुए भी की सच झूठ दोनों ही शून्य है।
जब हम,
सच शून्यता, शून्यता सच, सच शून्यता, शून्यता सच, सच शून्यता में
उलझे हुए होतें हैं
झूठ, अपना जीवन बचाए हमराहों संग आगे निकल चुका होता है
और सच!
था ही क्या!
एक बार फिर से प्रश्न ज्यो का त्यों उधारी खत्म होतें ही विलीन रहता है।
उसी वातावरण में जहां था, उसी वातावरण में था जहां है।
सिर्फ पूछने वाला लापता रहता है या बदलते रहता है।

J ❤️

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