"सुरुवात"

"सुरुवात"

चलो रहने दो कुछ और  बात करते हैं।
ठंडी हवा, बरखा को गुलाब  करते हैं।
ये बेतुका मौसम तुम्हे भी खाता होगा।
खिल जाये हम ऐसी सुरुवात करते हैं।

है दफ्न जज्बात का आकाश तो क्या।
बातो के समन्दर में छोटा नाव खेते हैं।
बिछा दो चाल काजल की,  गजरे की।
हम भी खुद को बड़ा अय्यार करते हैं।

रख लो सफेद सा मोती समझ गले में,
हम भी गुलदस्ते में अनेक फूल देते हैं।
गजब शांत हैं ये उड़ता पतंग देखो तो,
ढिल दो तो,  तो आर या पार करते हैं।

बहके हुये हम बहके हुये तुम एक जैसे।
दिल के अल्फाज़ो को अल्फ़ाज़ देते हैं।
कहाँ तक चलेंगे खोये खोये से साथ में,
बैठो सामने, हम नई सुरुवात करते हैं।

ठंडी हवा, बरखा को गुलाब  करते हैं।
खिल जाये हम ऐसी सुरुवात करते हैं।

~: ज्योतिबा अशोक

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