।।जहां हार जायेगा।।
बरस जायेगा सारा बादल और दरिया सुख जायेगा।।
जून के तीखे में मीठा से मीठा पवन छु हो जायेगा।।
तब भी तो रहूँगा सलामत मैं तुझमें और तुम मुझमें।।
भले ये चाँद टूटे ये तारो का जमघट बिखर जायेगा।।
कभी कोई तुम्हारी साँस गमएआह लिए निकलेगी।।
तो कभी मेरे हलक से याद ए खुसबू उतर जायेगा।।
इस तरह थोडा थोडा भिंगेगा सिरहाने का तकिया।।
और तन्हा सफर के रातो का कारवाँ बीत जायेगा।।
जायेंगे जहाँ भी तुम आओगे संग छिप के सभी से।।
तुम्हारा भी ये नैयननक्श मेरा नाम सा मुड़ जायेगा।।
और एक रोज इस मैसम में घुल मिल जायेंगे हम।।
फिर ये बहाना ये दस्तूर ये दुरी जहां हार जायेगा।।
~: ज्योतिबा अशोक
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