मीत
सोचता हूँ एक गीत लिखू।।
चुपके से तुम्हे मीत लिखूँ।।
छुपा कर अपने आँखों में।।
एक हारी हुई जीत लिखूँ।।
कभी कह दू चाँद चाँदनी।।
तो कभी पूर्वा का झोंका।।
कोई मोरनी कोई हिरणी।।
एक तस्वीर रंगीन लिखूँ।।
मैं भींग जाऊ सरबत में।।
हाँ ताज का दीदार करूँ।।
या बस लू होंठो पे उसके।।
जहां को कमसीन लिखूँ।।
हो गई हैं कैसी मर्ज मुझे ।।
हो गए उनके केशु बादल।।
क्या कहूँ उल्फ़त को अब।।
या प्यार को मैं तुम लिखूँ।।
धुप, छाँव, बरसात, झील।।
क्या रहने दूँ मैं क्या लिखूँ।।
सोचता हूँ एक गीत लिखू।।
चुपके से तुम्हे मीत लिखूँ।।
~: ज्योतिबा अशोक
No comments:
Post a Comment