आप
सुबह की पहली मीठी चाय हो आप।।
बरसात की नरम नरम गीत हो आप।।
रंगीन फूल हो मेरे सतरंग दुनिया के ।।
हर सुबह की पहली किरण हो आप।।
पहली काली बदरी से हो सावन का।।
एक हंश की सुनहरी हंशनि हो आप।।
दोपहर की मीठी सी हुई नोक झोक।।
मेरे पल पल की सुकून चैन हो आप।।
बहार की खुसबू नई नन्ही गुलाब हो।।
न बुझने वाली मेरी किताब हो आप।।
उफनती सागर की खमोश सी लहर।।
दिल की बिगड़ती आवाज हो आप।।
गुलाबी पसरी चादर हो मेरे शांझ की।।
मेरे बुझे आँगन की चाँदनी हो आप ।।
फलसफा और भी बहुत हैं कहने को।।
मेरी जुस्तजू, आरजू, पुकार हो आप।।
खोई खोई रहती मेरी रातो की नींद ।।
मेरी जानेजां मेरी सब कुछ हो आप।।
~: ज्योतिबा अशोक
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