हाँजी मैं गुनगुनाने लगा हूँ।।

लय को पकड़ आहिस्ते आहिस्ते।।
मैं ताल में बदलने  लगा हूँ।।
हाँजी मैं गुनगुनाने लगा हूँ।।

सावन के मेघो को आहिस्ते आहिस्ते।।
चूड़ियों में समझने लगा हूँ।।
हाँजी मैं गुनगुनाने लगा हूँ।।

खींचने लगा हूँ लकीर आहिस्ते आहिस्ते।।
मेंहदीरंग में ढलने लगा हूँ।।
हाँजी मैं गुनगुनाने लगा हूँ।।

मैं  चमेली बांध रहा आहिस्ते आहिस्ते।।
गजरे में उलझने लगा हूँ।।
हाँजी मैं गुनगुनाने लगा हूँ।।

और करीब हो गया हूँ आहिस्ते आहिस्ते।।
सोहबत में बिगड़ने लगा हूँ।।
हाँजी मैं गुनगुनाने लगा हूँ।।

पाने लगा हूँ आपको आहिस्ते आहिस्ते।।
आपका, मैं बनने लगा हूँ।।
हाँजी मैं गुनगुनाने लगा हूँ।।

~: ज्योतिबा अशोक

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