कभी देखा हैं!?
नन्हें से शीशु को नन्हा सा मुट्ठी बाँधे।।
देखना।।
लगेगा वो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के कण कण को जानता हैं।।
उसे हैं आभाष की ये दुनिया कुछ नही।।
मोह माया के चादर में लिपटी एक सुंदर कन्या के सिवा।।
देखना।।
सीखना और की कैसे!?
तजर्नी जो बड़े होने का गुमान किये रहती हैं।।
मध्यमा के बढ़े नाख़ून,
कैसे उसके मुलायम गालों को प्रभावित करती है।।
जिन्हें वो दबाएं अंगूठे में कहता हैं।
माफ़ करना मगर तुम इतने भी बढ़े नही।।
उसकी कनिष्ठ को बढ़े गौर से देखना।।
कनिष्ठ उस मुट्ठी से निकलना तो चाहती हैं मगर कैसे!?
अपने परिवार को छोड़ दे।।
अनामिका समझदार बन मुट्ठी संग रहती हैं।।
बिच बिच में फड़फड़ाती हैं।।
अंगूठा भी इतना बढ़ा नही की अनामिका को जीत ले।।
वो शीशु कहता हैं।।
क्या बात हैं भाई कोई परेशानी हैं रहों न सब मिलकर।।
अपनी ताकत इतनी ही जोर लगाऊंगा न।।
देखना।।
सीखना की कैसे!?
वृद्ध एक मुट्ठी बनाता हैं।।
जैसे वो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के कण कण को जानता हैं।।
उसे हैं आभाष की ये दुनिया कुछ नही।।
मोह माया के चादर में लिपटी एक सुंदर कन्या के सिवा।।
देखना।।
~: ज्योतिबा अशोक
मुट्ठी।।
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