माचीस के तीली को रगड़ कर।।
सुबह ही में।।
सूरज से बड़ा आग लगा दो।।
बाँस के नली में फूंक मार कर।।
तूफान ही में।।
बुझे कोयले में चिंगार लगा दो।।
मत छाँव दो मोमबती के सुते को।।
बरसात में ही।।
ऊँची करो रौशनी खम्बा लगा दो।।
हुकूमत नही सुनेंगी।।
ये कब तुम सुनोगे।।
नही सम्भलना तो जाओ हटो।।
फिर एक और ठप्पा लगा दो।।
देखो आँखे में आँखे डाल कर वो पागल नही हैं।।
जलता हैं आग आँखों में।।
देख भी न पाओ शायद।।
वो चला जाये झुका कर पलक।।
उस अस्थिपंजर के आँखों में घुस अमीरो के ख्वाब में पहुँचो।।
फिर बड़ा आग लगा दो।।
अभी तो बहुत हैं वक़्त।।
तुम भी बेतरतीब, बेढंगा, बेफिजूल कानून या पागल बन जाओ।।
लगा दो मिशाल कैसी भी।।
रगड़ो माचीस की तीली।।
और
बुझे कोयले में चिंगार लगा दो।।
~: ज्योतिबा अशोक
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