जिसमे तुम रहो।।
जिसमे रहूँ मैं।।
थोड़ी आशाये।।
थोड़े नींद पुरे, पुरे थोड़े सपने।।
लटके कोई सीड़ी चाँद से।।
और तुम सरपट चढ़ जाओ।।
मुझे ले के।।
ऐसा सोचते हो की।।
मेरी आँखों में दिखे उगता सूरज।।
इन्ही छोटी आँखों में।।
दिख जाएं।।
तुम्हे बड़ा सा बहुत बड़ा सा तारो का जमघट।।
कोई लेहर आ कर टकरा जाये।।
और छू जाये।।
बसन्त।।
मेरी आँखों से।।
मेरी आँखों में।।
कहो तुम्हे मेरे गीत पसन्द हैं न।।
मुझे भी।।
~: ज्योतिबा अशोक
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