कल ही तो पूछा था।।
उस रिक्शे वाले से कैसे हो भाई!?
धर्म कर्म कैसा चल रहा हैं!?
उसने ठहाके लगा के जवाब दिया।।
कर्म सामने हैं और मैं जिन्दा हूँ।।
में निःशब्द बन तकते रह गया धँशी आँखों में।।
जो मुझे मिला था जवाब।।
उसमे मौजूद लाखो सवाल।!
उन सवालों के भुलभुलिये में बुरी तरह उलझ गया।।
फिर बात को टालते हुए।।
उस इंसान के नाम-मात्र ढांचे को गौर से देखा।।
दाड़ी थी तो मैंने भी कह दिया।!
अल्लाह के नज़र में हो कब तक ढुलवायेगा तुमसे।।
उसको भी दिखेगा ही।।
कब तक!?
वो नज़र अंदाज़ किये इस लाल पसीने को।।
अमीरो के घर अशरफिया डालेगा।।
उसने कहा साहब आप भगवान में इस युग में विश्वास करते हो!?
मैं फिर से उलझ गया!
क्या!?
उसने मुझे बतया की वो हिन्दू हैं
या उसने मुझे हिन्दू समझा!?
या उसने मेरा ध्यान अपने तरफ खींचा!?
या उसने कहा कि भगवान ये क्या होता हैं!?
या उसने कहा कि अब जिंदगी और मौत भगवान कहाँ देता हैं।।
या उसने सिर्फ ये कहा कि आप भगवान मानते हैं!?
निःशब्द बेहरा खमोश बेजुबान बेजान सा बन।।
उसे देखना लगा।।
वो भी चुप चाप अपने कर्म में लीन हो चला दिया अपने पाँव।।
~: ज्योतिबा अशोक
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