ख़त 2
उम्मीद हैं आप ठीक होंगे।
हम भी ठीक हैं।
कल तक एक गम था,
खैर
आपको मुस्कुराते देखा और के मेहँदी में।
गम, वो भी कल जल गया।
आज कल अब बिलकुल तन्हा हूँ।
अब तक
घुटन सी थी सांसों में,
क्या मेरा प्यार कम था या मेरे प्यार को सलीका न था
कही बेवफा मैं ही तो नही था!
सब कुछ धुंधला धुंधला।
जो धुंआ था वो बिफर बिखर गया।
अब
सीने में यादो का एक कब्रिस्तान हैं अलग थलग बहुत से मकबरे हैं।
कही मरी मेरी खुशिया हैं।
कही दफ़्न हैं मेरी चाहत।
कही पड़ी हैं बिखरी बेतरतीब किड़े मकोड़ो की निवाला बनती हड्डिया,
मुस्कुराट की हड्डिया।
मैं चुपके से फुर्सत निकाल के कभी कभी रो लेता हूँ।
सबसे ज्यादा रोना ये आता हैं मैं रो क्यों रहा किस बात की सजा भुगत रहा!
ओफ्हो!! ये खत तुम तक नही जायेगा।
तन्हा हूँ इसलिए लिख रहा हूँ।
फिर धो कर अंशुओ से कब्रिस्तान के किसी कोने में पसार दूँगा।
सूखने के लिए या दफ़्न होने के लिए, नही मालूम।
उम्मीद हैं आप ठीक होंगे।
~: ज्योतिबा अशोक
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