तालियों के बीच।
तिरंगे की डोर खिंच देने को आज़ादी कहते हो?
कही आज़ादी का मतलब तुम ये तो नही कहते
भारत को स्वछन्द भारत को,
आज़ाद भारत कह कह के जण गण मण गा लेना।
या आज़ादी का बस इतना मतलब था!
अंग्रेजो को भगा देना।
क्या अंग्रेज थे तो तुम्हे पढ़ने की आज़ादी नही थी?
क्या अंग्रेज थे तो तुम्हे पहनने की आज़ादी नही थी?
क्या अंग्रेज थे तो तुम्हे खाने की आज़ादी नही थी?
क्या अंग्रेज थे तो तुम्हे अपने धर्म मानने की आज़ादी नही थी?
फिर बताओ
तुम आज़ादी से क्या समझते हो।
सिर्फ चिल्लाना की हम आजाद हैं?
या तिरंगे के नीचे साल के दो दिन लम्बे लम्बे भाषन देना?
तुम्हारे कहने का मतलब ये तो नही की
हमे अवसर नही मिलता था, हमारे हुनर को दाम नही मिलता था, हमारे कार्यो को हमारा नाम नही मिलता था या ये तो नही सोच रहे या ये तो नही कहने वाले की उस वक़्त मैं पैदा होता तो मुझे समझ आता!
चलो मैं अपनी गलती मानता हूँ।
मैं ही गलत युग में आ गया।
मगर तुम भी तो बताओं
अभी मिलता हैं क्या?
क्या नही हैं हम कैद बड़े बड़े पूंजीपतियों के ताले में,
क्या इसके जिम्मेदार सिर्फ हमारे नेता हैं?
क्या मौका मिलते ही हम नही पीते हैं मासूम भोले भालो का खून?
उनके हड्डियों तक से एक एक बूंद नही चूस लेते हैं?
क्या दोषी सिर्फ और सिर्फ दूसरे हैं?
और तुम दुसरो पे अंगुली उठाने को हो?
फिर भी,
तुम बताओं
तुम आज़ादी से क्या समझते हो।
तालियों के बीच।
तिरंगे की डोर खिंच देने को आज़ादी कहते हो?
~: ज्योतिबा अशोक
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