ये मेरा ख्याल, तुम अपना लिखना
मेरी ख्वाबो में मिट्टी का एक दिवाल हैं।
जिन पे,
तुम भरो रंग
मैं रंग घोल घोल के दूँ।
थोड़े गुलाबी, तुम्हारी होंठ की तरह।
थोड़े सफ़ेद, तुम्हारी गजरे की तरह।
थोड़े पिले, तुम्हारे कर्ण फूल की तरह।
थोड़े हरे, तुम्हारी चूड़ियों की तरह।
थोड़े से बेगैनी जिनमें छिड़के हो रंगीन सितारे तुम्हारी चुनर की तरह।
दरवाज़े पे हो एक लंबी लकीर जो जुड़े किसी फूल से।
मैं खिल जाऊँ कोमल सा एहसास पा कर।
तो दूसरे छोर पर तुम भी मुस्कुराते रहो।
छोटी सी खिड़की हो छोटा सा दरवाजा हो।
दो आत्माओ को चला सके बस उतना बड़ा ही अपना कमरा हो।
मैं घोलते रहूँ रंग तुम्हारे जीवन में
तुम मेरी जीवन के दिवाल को सजाती रहो।
तुम भी कहो तुम्हे क्या चाहिए?
कैसी है तुम्हारी ख्वाहिशें?
क्या मैं हूँ कही,
क्या तुम्हे पसन्द हैं ऐसे कामगर कलाकार?
अजीब हैं।
थोड़ा अजीब हैं।
मगर ये मेरा ख्याल हैं।
तुम लिखना कैसा तुम्हारे सपनो का दिवाल हैं।
~: ज्योतिबा अशोक
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