ख़त 8

ख़त 8

तलाश पे तलाश के बाद भी कोई तुम्हारे सा साथी न मिला,
उधार का भी।।
मिलता तो
क़िस्त क़िस्त में चूका देता एहसान रखता सो अलग।।
अब यूँ लगता हैं ज़िन्दगी मीना कुमार सी हो गई हैं
वक़्त आग से चमकते सोने पे चल रहा हैं
और
मैं सोने से चमकते आग पर।।
तुम्हारा न होना उतना दुःखदाई न होता शायद।।
ये बेइंतहा दर्द तब और बढ़ता हैं जब चारो तरफ से आदमियो के फैज़ से घिरा रहूँ और निगाह दूर तक फेंकनी पड़े
अपनों के तलाश में,
इसके बावजुद भी कोई अपना न दिखे।।
सच कहूँ?
यहाँ एहसास होता हैं तुम्हे पाने के लिए क्या क्या खो दिया।।
इतना साथ न होता तो अच्छा था
मगर
देखो न इससे भी ज्यादा का साथ था।।
तुम्हे अजीब लगे लेकिन सच हैं।।
अब जी नही चाहता घण्टो बैठने को,
जब थक जाता हूँ पैर जाम हो जाते हैं तो हाथ चलने लगता हैं, हाथ भी नाकाम हो जाते हैं तो दिमाग पैर और हाथ का ताकत लिए दुगुने रफ्तार से चलने लगता है मगर कब तक? वो भला हैं पलको का अब तक नाराज न हुई रात दिन सुबह शाम घड़ी की सुई सी लगातार चलती और तारो की टिमटिम से जलती बुझती रहती हैं।
ये छुट्टियां तो जैसे एक बोझ सी बन गई हैं।।
हर सप्ताह चली आती हैं कभी कभी और भी बढ़ जाती हैं वो भी एक ही सप्ताह में।।
अजीब बात हैं ये मेरे लिए।।
अजीब बाते है मेरी तुम्हारे लिए।
मैं तो छुट्टियों का दिवाना था फिर??
ज्यादा सोचो मत जैसे एक रोज तुम बेवफा हो गए वैसे ही मैं खुद से बेवफा हो गया।।
चलते फिरते मुर्दो के बीच मुर्दा बन वक्त तो गुजर जाता हैं तुम ही बताओ इन बोलती दीवारों सामानों के बीच कब तक चुप रह पाऊँ?
हाँ मैं नही बोलता,
मगर चारो तरफ पानी ही पानी हो, रेत का समंदर हो तो भी कब तक बूंदा बांदी नही होगी?
इंसान हाड़ मांस से बना एक शरीर हैं ये तो सभी जानते हैं।।
फिर क्यों कोई ये नही जानता जब पत्थर टूट सकता हैं लोहा पिघल सकता हैं तो मैं??
मुझ पर इतनी पाबंदिया क्यों?
क्या मैं रोऊँ भी न!!
सच्चाई दोहराऊं भी न!!
तुम्हे तो किसी ने कहा भी नही मुस्कुराना छोड़ दो मेरे सामने बैठ कर इतराना छोड़ दो अरे किसी ने पूछा तक नही तुम्हारी बेवफाई की वजह।।
और मुझे!
खैर।।
पिछली खतों की तरह ये भी तुम तक न जायेगी।।
कुछ देर में तन्हाई के आग पर बना वाष्प बरस जायेगा कागज पानी से तार तार हो जायेंगे इनपर लिखे एक एक शब्द धूल जायेंगे।।
और मैं सो जाऊंगा।।
मैं सो जाऊंगा मैं सो जाऊंगा मैं सो जाऊंगा।।

~: ज्योतिबा अशोक

No comments:

Post a Comment

-- 【 the story of every living dead stone. 】 --

-- 【 the story of every living dead stone. 】 -- At that stage when my colleagues and my cousins ​​try to strengthen the leg.   I was at th...