सोचने हैं होली बुरा क्यों नही हैं।।
कुछ भी इसमें बुरा क्यों नही हैं।।
आरे उड़ो गुलाल।।
खुद में जान भर आप इज्जत बचानी तो खुद ही, वरना हम उड़ा देंगे।।
भर के गाल।।
आंख के नमी को छिपा देंगे।।
कोई जली हैं कोई जली थी कोई आज जली हैं कोई कल जलेगी।।
महिला थी।।
क्या??
तो?? बुरा न मानो होली हैं।।
सोचने हैं होली बुरा क्यों नही हैं।।
कुछ भी इसमें बुरा क्यों नही हैं।।
आज पढ़ा।।
पढ़ा लिखा हूँ इसलिए पढ़ा सुनने पे रहता तो यकीन शायद में यकीन रहता।।
किसी ने लिखवाया हैं अख़बार में होलिका से प्रदुषण नही होता??
बुराई पर अच्छाई की जीत हो गई।।
कल एक अधनंगी का सरेआम चूल्हा तोडा गया उसी अख़बार में था उसी होलिका के निचे, पढ़े लिखो के शहर।।
वजह न पूछो साहब।।
तुम पढ़े लिखो हो न!! कहा समझोगे अंगीठी के धुएं का मतलब।।
होली हैं अच्छाई जीत गई।।
क्या??
हाँ ऐसे ही....
तो!! आरे जाओ भई रंग डालो
जिन्हें सोचने हैं सोचे हमे क्या?? हम तो भांग में थे।।
कुछ बुरा हुआ??
तो?? बुरा न मानो होली हैं।।
सोचने हैं होली बुरा क्यों नही हैं।।
कुछ भी इसमें बुरा क्यों नही हैं।।
~: ज्योतिबा अशोक
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