ख़त 10

ख़त 10

लफ्ज़ झूठ बोलते हैं बहुत झूठ।
मैं जिन यादो को मुस्कुरा कर लिखता हूँ लोगो को जाने क्यों रोता हुआ दिखाई देता हैं।
अक्सर सोचता हूँ,
तुम होते तो लोगो को कहते देखो मेरी आँखों में क्या मेरा आशिक़ रोंदू हैं?
और लोग जब तुम्हारी न सुनते,
तुम लड़ पढ़ते और रो देते फिर आगे का मोर्चा मजबूरन मैं सम्भालता।
ये टिक टिक आज फिर छुट्टी न ले कर आई सौतन ले कर आई हैं।
औरत अपनी सौत बर्दाश्त कर भी लेती हैं मर्द तो सोच भी नही पाता।
मर्द औरत में जाने कौन बेहतर हैं?
लोग कहते हैं दुनिया गोल हैं।
मैं कहता हूँ वक़्त गोल हैं।
अगर दुनिया गोल हैं तो तुम मुझे दिखते क्यों नही? रहते तो एक ही शहर में हैं ऐसा पहले कभी न हुआ था। कभी कभार देर से निकलने पर भी न जाने कैसे हम एकदूसरे को दिख ही जाते थे।
तुम्हारा कहना था कि मैं तुम्हारा पीछा करता हूँ।
मैं कहता था तुम्हे सिर्फ बाजार ही सूझता हैं।
तब हम दोनों गलत थे आज सिर्फ मैं गलत हूँ।
वक़्त का गोल होना तार्किक हैं चाहो न चाहो आ ही जाता हैं।(मेरा मानना है शायद इसी वजह से पुरानी सभी घड़िया गोल हुआ करती थी सच जो भो हो।)
छुट्टी। आ ही गई। कहा था न वक़्त गोल हैं।
आज फिर छुट्टी! मेरी दूसरी माशूका पहली ज़िन्दगी थी यानी की तुम।
छुट्टी न आती जैसे कलम में जान आ जाती है हाथ रेंगने लगते हैं दिमाग बुदबुदाने लगता हैं सप्ताह भर का चढ़ाया हुआ झूठा रंग आँखों के स्याह से उतरने धुलने लगता है।
स्याह न कहूँ तो इन आँशुओ को और क्या कहूँ! जब जब कोशिस करता हूँ तुम्हारे चाह में कोई गजल लिखने को गम का एक सौलाब उमड़ पड़ता हैं।
यादो की सुरुवात वक़्त कलम हाथ दिमाग सब मिलकर करते हैं और यादों का अंत अकेले आँखे ही कर देती हैं।
क्या लिखूं बहुत सी यादे आँखों के सामने आ कर मुझे मुझे चिल्ला रही हैं इन्हें कौन बताये लिखने की चाह तो कुछ नही हैं कौन सा तुम तक ये ख़त जाने वाला हैं और लिखे बिना जिया भी न जा रहा हैं।
हाँ। अभी अभी बाहर से भोंपू की आवाज आ रही हैं। आइसक्रीम वाला हैं शायद वो कुल्फी वाला।
दिन रात कानों में दिल में बस तुम्हारे आवाजो के बीच कुछ और भी आवाजे हैं जो घर कर गई हैं।
तुम्हारे जाने के बाद ये कुल्फी वाला रोज आता हैं इधर जब खिड़की खुली रहती तो लम्बे वक़्त तक भोंपू बजाता हैं जैसे कह रहा हो कुल्फी नही खानी क्या?
तुम्हे याद हैं उस रोज मैं दो कुल्फी लाया था और जौसे पैसे देने गया तब तक तुम दोनों खा चुके थे और फिर ऐसे ही तीन बार तुमने मुझे दौड़ाया था अंतिम बार मैं पैसा और कुल्फी दोनों साथ साथ लिया।
वैसे खिड़की बन्द होने पर भोंपू वाला नही रुकता हैं।(उसे लगता हो घर में कोई नही हैं)
एक दिन अचानक उसी वक़्त पर आना हुआ तो कुल्फी वाला पूछ बैठा।
साहब आज कल कुल्फी नही लेते क्या बात हैं?
मैंने कुछ न कहाँ तो उसने दुबारा पूछ लिया बच्चा कही रिस्तेदार में गया हैं क्या?
मैं उसे तकते रह गया और बोला हाँ भई।
मन में कहाँ रिस्तेदार में ही गया हैं अपने रिस्तेदार में मुझे छोड़ कर मेरा बच्चा ही तो था।
उस दिन सीढ़ियों के 50 कदम लग रहे थे जैसे मैं अपने उम्र के 50वे कदम मे चल रहा हूँ एक एक कदम के चढ़ाई में शरीर की पूरी ताकत झोंकनी पड़ रही थी।
ये ख़त ये सारी बाते तुम तक न जाएँगी फिर भी आख़िरी शब्द कलेजे के लहू से लिख रहा हूँ।
कमरे तक आते आते रो पड़ा था खूब रोया था आँशु रुकने का नाम न ले रहे थे।
बिलकुल,
आज ही की तरह।

~: ज्योतिबा अशोक

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