हम बदचलन

हम बदचलन

माफ़ करना गाँधी हम खो गए।।
हम तो बदचलन हो गए।।
तुम्हारे बाग सुनसान हैं।
क्यारियां मुरझाई पड़ी हैं।
पूस में भी आग बहती हैं।
गंगा अलग, यमुना अलग दिखती हैं।
कहाँ कोई वजू करता? कहाँ कोई मन्त्र पढ़ता?
खुशहाली, अब कहाँ सरेआम आम दिखती हैं?
सड़को पे, हाँ उन्ही सड़को पे
जिनपे आज भी तुम्हारे पाव हैं।
कोई अकेली लड़की दिखती हैं तो वहशियों की फ़ौज दिखती हैं।
जा रहा होता है छुपा के समेटे समेटे अपने हड्डियों को नौजवान किसान
ये हाल!
संसद से निकलता पहलवान काले चश्मे के भीतर से देखता हैं।
तिरंगा अब एकता का नही वोट का केंद्र बन गया हैं।
वन्दे मातरम पे दलों का मुहर लग गया हैं।
सब खत्म।।
सब सत्यनाश।।
बादल कहाँ? अब तो आँखे ही हैं।।
माफ़ करना, माफ़ करना।।
हम न सम्भाल पाये।।
हम न सम्भाल पाये।।
माफ़ करना अम्बेडकर हम खो गये।।
हम तो बदचलन हो गए।

~: ज्योतिबा अशोक

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