()आज कल जिस तरह हम पर जबर्दस्ती कर के अपने मनसूबे थोपे जा रहें वो चाहे अपने पैसे के इस्तेमाल की बात हो या खाने की या फिर अब तो सोचने पर भी फरमान आने लगे हैं। दिमाग थम गया है दिल बोल रहा है()
आजादी
आजादी तुम कौन हो?
बचपन से ही सुनता आया हूँ क्या तुम कोई हूर की परी हो!
या किसी लोक की करिश्माई देवी हो?
कब पैदा हुई थी तुम?
कब जवान होगी?
कुछ बतालोगे
या मैं
गुलाम ही रहूँ
अलग अलग वक़्त में अलग अलग हुकूमत से।
बोलो कौन हो तुम?
ताकि मैं भी जी सकूं
अपने मन से अपने मन से खा सकू गा सकू खेल खुद उड़ झूम नाच सकू।
बोलो न कौन हो तुम?
ताकि मैं भी तुम्हे पा सकू।
राजवंशी जे. ए. अम्बेडकर
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