-【 *कल जन्मदिन पे* 】-
कल जन्मदिन पे मुझे मरने का ख्याल आया।
मैं भी!
जहाँ सब दुनिया के रंगमंच के हज़ार लाख रंगों में रंग जाना चाहते हैं।
मैं सोच रहा था
अगर मैं मरा तो कितने याद रखेंगे?
साल दो साल पांच साल के बाद कौन पूछने वाला है?
मेरे अपने!
अपने क्या? परिवार वाले भी क्या न भूल जाएंगे!
लेकिन मैं शोषण कर के समाजवाद
लेकिन मैं लड़वा कर अम्बेडकरवाद
लेकिन मैं तलवे चाट कर इतिहास का पन्ना भी तो नही बन सकता!
फिर आओ हिम्मत करते हैं
और
उठा कर इस पूरब के सूरज को पश्चिम में रखते हैं
चाँद को मजबूर करते हैं रोज बढ़ने के लिए पूरब से निकलने के लिए
फिर देखतें हैं चमत्कार
अरे भाई जब कुछ करना ही नही!
मर ही जाना है तो यही करते है
पी डालते है सारा समंदर एक ही सांस में
क्यों?
*राजवंशी जे. ए. अम्बेडकर*
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