ख़त 11

()आज कल सिद्धान्तों से घिर गया हूँ लेकिन मैं प्रेम स्नेह भी तो नही छोड़ सकता! प्रेम प्रकृति का आज़ादी के बाद सबसे कीमती हीरा है। जीवन मे जब कभी मौका मिला प्रेम करूँगा और खूब करूँगा। तब की तब फिलहाल आप लोग मेरी कविता को पढ़े आनदं लें। पिछले 10 खतों के बाद आज #ख़त 11😊😊()

-【ख़त 11】-

जब भी लिखने बैठता हूँ
तुम ही तुम होते हो।
कभी कभी हंसी आती है तुम हो कहाँ?
मेरे दिल में? मेरी आँखों में? मेरे उँगलियों के नश नश में? मेरी कलम में या मेरे ख्याल में?
कई वर्ष हो गए न तुमसे दूर हुए!
लगता ही नही ऐसा लगता है बस अभी अभी बालकनी से निकल आओगे
रशोईघर से गुस्से में पशीने से तर ब तर कुछ कह जाओगे
और मैं?
रोटी बिस्किट चाय पानी के बहाने बार बार तुम्हें बुलाऊंगा।
ऐसा लगता है कि अपनी पल्लू कमर पे बाँधे तुम धक्के दोगे मुझे उठाओगे और कहोगे सब्जी नही लानी क्या? बाजार नही चलना क्या?
और मैं?
जान बूझ कर तुम्हे अनसुना कर दूंगा।
तुम बिगड़ जाओगी बाजार जाने तक वहाँ समान खरीदने तक घर आने तक
तुम्हारा रूठना तब दूर हो जाएगा जब मैं तुम्हारे इस रुसवाई से परेशान होने लगूंगा कुछ न कुछ तरीके जोर आजमाइश करने लगूँगा
ताकि तुम फिर से मुझे तीखी नजरो से देख सको मुस्कुराते हुए
और मैं?
फिर से तुम्हे परेशान कर सकूं
एक इल्जाम लगाऊं? तुम बहुत शातिर थी
तुम मेरी इन नासमझी सारी हरकतें देखती मुस्कुराती रहती थी मुझसे छुपा के
अरे अरे नाराज न हो तुम भी तो मुझे परेशान करती थी न!
फिर? इतना तो इल्जाम बनता है न?
खैर।।
मैं,
बुद्धू सा।
सुनो आज का एक किस्सा लिखूं?
आज एक फ़ाइल में सिग्नेचर कर रहा था और पता नही कैसे तीन चार जगह अपने नामो के जगह तुम्हारा नाम लिख दिया।
ये तो तब पता चला जब पूरे आफिस घूमते हुए वो फ़ाइल दोबारा मेरे पास पहुँची।
शर्म भी आई हंसी भी।
आफिस में ही हूँ अभी वही से ख़त लिख रहा
अंधेरा होने को आया है
घर भी जाऊं तो क्यों?
एक अँधेरे से निकल दूसरे अँधेरे में जाने का सफर भी एक सुनसान अंधेरे रास्ते से गुजरता है।
जिंदगी बिना किसी स्टेशन के चल रही है।
बिल्कुल इस ख़त की तरह
इसको भी कही नही जाना
कोई जाए भी तो कहाँ जाए कोई बिन पते के?
थोड़ा रुकता हूँ
जब आँशुओ से धूल के मेरा बदन तर तर हो जाएगा ये खत भींग भींग के कागज का महज टुकड़ा रह जायेगा
किसी ढाबे से पेट के लिए कुछ रोटियां लूंगा ताकि कल फिर आ सकूँ
कल फिर जी सकूँ कल फिर रो सकूँ
तुम्हे याद करने के लिए।। तुम्हे याद करने के लिए।।
तुम्हे याद करने के लिए।। तुम्हे याद करने के लिए।।
तुम्हे याद करने के लिए।। तुम्हे याद करने के लिए।।
हाँ तुम्हे बहुत याद करने के लिए।।

राजवंशी जे. ए. अम्बेडकर

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