()एक फ़िल्म है "तीसरी आज़ादी" उसमें कुछ पंक्तिया बोली गई है सुनिएगा "अरे तू जिंदा क्यों है? तू मर क्यों नही जाता!?.... थूक, थूक तू अपने आप पे, थूक तू अपने वर्तमान पे, थूक तू अपने भविष्य पे थूऊऊऊऊककककककककक........ आज कल बलात्कर मर्डर नेता चोरी में पकड़ा गया सैनिक मारे गए पाक हमला आतंकी हमला घूसखोरी ये सब अब कुछ नया नही लगता रोज का हो गया है अब तो। लेकिन इसी में कोई खबर आ जाएं कोई *भात भात* चिल्ला के मर जाए *एक छोटी बच्ची भूख से मरजाए* और उसमें भात जिसे पढ़े लिखें हम संवेदनसील लोग चावल कहतें है सिर्फ इसलिए न मिले की उसका राशन कार्ड आधार से नही है? वाहः क्या भारत बेमिशाल! क्या सरकार है अद्भुद!! क्या राज्य सरकार है बेमिशाल!!! और क्या वह डीलर है!!!! जवाब नही वहा के लोग कितने महान है आसमान भी छोटा पड़ जाए।। तो बस एक ही वाक्य दिल से निकलता है थूक थूक तो अपने आप पे थूक तू अपने वर्तमान पे थूक तू अपने भविष्य पे थूऊऊऊऊऊऊऊकककककक....... ()
-【 *आदमखोर हुकूमत* 】-
खून के रस में मांस को चाप के खाती है।
ये जो आज की हुकूमत है स्वाद बदल कर आदमी खाती है।
कभी लड़की की जांघ को खाती तो सुबह सुबह मुसलमान को चखती है
अरे दलितों तुम में है ही क्या जो खाएगी? इसलिए तेरे हड्डियों को चूस के खाती है।
लगता है तेरे खून का रस इसे भा गया है। अए जवान।
ये आदमखोर हुकूमत तेरा खून बड़े मजे से पीती है।
जब लेना होता है इसे मजा
तुझे नंगा कर देती है
और तू लड़ता है गर
और तू बगावत करता है गर
धर्म के नाप पे दंगा करा तेरे जहिलता पे तालिया ठोकती है।
ये सोचती है खूब सोचती है
तुझे कैसे नोचे? तुझे कैसे घसीटें?? तुझे कैसे चबाये??? तुझे कैसे खाएं????
हर नए दिन नए फरमान सुनाती
गर तू बच गया तो ये घबरा जाती है
नए नए मशाले संग खाने को तुझे नए तरकीब अपनाती है।
किसी को मार देती है उसकी दाड़ी क्यों है?
किसी को खा जाती है उसे भूख क्यो है?
किसी को चबाती है उसकी रुपये में कमाई क्यों है?
इससे भी कोई मासूम बच जाए तो कहती है हाहाहा तुझे मेहमान संग खाऊंगा तेरा तो आधार ही नही है।
बचोगे कैसे देशद्रोही बन चुके हो
सींच के भी मिट्टी आज तुम इनके नजर में नक्सली बन चुके हो
गुनेहगार हो तुम गुनेहगार हो
उसकी नजर में तुम जिंदा क्यों हो?
मेरी नजर में तुम चुप क्यों हो?
आदमखोर हुकूमत बन गई है तेरी खमोशी से
अरे मरना ही है तो चिल्लाओ चीखों रो
बोलो आदमखोर आदमखोर हुकूमत
जोर से बोलो इतनी जोर से की अगली बार जब चम्मच से उठाए तुम्हारे लोथड़े को इनके हाथ कांप जाए
इनके कान फट जाए डर से इनका कलेजा दहल जाए
हां आदम खोर हुकूमत
हुकमत ये आदमखोर।।
*राजवंशी जे. ए. अम्बेडकर*
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