झूठ

( जिन्दगी में निरंकुशता क्या होती है? समझने की कोशिस कीजियेगा। जब सामने वाला झूठ बोले और वो शख्स जानता हो कि आपसे वो झूठ बोल रहा है और जिस झूठ को वह बोल रहा है उसे आप समझ रहे हो फिर भी वो लगातार झूठ बोले जा रहा है। इसलिए सिर्फ इसलिए कि आप सुने जा रहें है उसकी बात को सच मान कर ये जानते हुए भी की वो झूठ बोल रहा है। जब भी ऐसी परिस्तिथि आए आप समझिएगा आप निराश हैं परेशान हैं हताश हैं)

- 【 झूठ 】 -

कुछ कह रहा था वह
जिससे मैं चिर परिचित था
सुना था मैंने उन शब्दों के बारे में कही न कही
फिर भी मान लिया
मान लिया की यह जीवन चिरस्थाई है
मान लिया की यह वैभव अमर है
ये भी मान लिया मैंने की इन रिश्तों का कभी अंत नही
जबकि मैं जानता था ये सब झूठ है
फिर भी मान लिया।
आखिर क्यों? क्यों उसे उन चिड़ियों की दास्तान सुनाता?
जो अपने नन्हे नन्हे चोंच में अपने नन्हे नन्हे बच्चों के लिए किसी नन्हे से जान के नन्हे से बच्चों को उठा के लाती है
उसके वैभव पूर्ण मिट्टी के घरौंदों से विशाल नालियों के खूबसूरत घर से
ताकि उसे उसके बच्चे खा सकें
वो बच्चे जो उसे अगले हफ्ते यक़ीनन छोड़ जाएंगे हमेशा के लिए।
सच तो यह है।
मैं भी नकार देना चाहता था जीवन के सच्चाई को।
मैं भी मरना नही चाहता था!
पूरे जीवन भले ही मशीनों पर मशीनों के साथ मशीनों के तरह गुजारा
मगर आखिरकार मैं भी हूँ तो मानव ही न!
बेहद स्वार्थी कपटी धूर्त मूर्ख
सब कुछ इसलिए भी सुन गया ताकि मैंने भी उसकी बातों को उससे पहले कहीं और सुनाया था
ये जानते हुए भी की मैं झूठ बोल रहा हूँ
ये जानते हुए भी की वह सब जानता है कि मैं झूठ बोल रहा हूँ
आखिर मैं भी तो जानता हूँ कि वह भी एक मानव है।
जैसे अभी किसी ने मुझे कुछ कहा
मैं सब जानता था उसे इसकी भनक थी फिर भी वह कहता गया
मैं मानते गया।

राजवंशी जे. ए. अम्बेडकर

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