खत 14

ख़त 14

आखिरी दिनों के हमारी आखिरी सांसो में
मुझे कुछ भी पूछना नही था
न तुम्हे कुछ कहना था
शायद यही हमारी सबसे बड़ी गलती रही
यह गलती न हुई होती तो हम मरतें नही घुट घुट के ही सही सांसे तो चल रही होती!
जिंदा तो होते!
हां
मुझे कुछ भी पूछने से पहले सोचना पड़ता था ऐसे सवाल का भी क्या फायदा था?
तुम भी अपने शब्दों में वही चहचहाट न रख सके थे ऐसे बातों का भी क्या?
लेकिन ऐसी ही बातें हुई होती तो बेहतर होता।
शायद इसलिए भी की तुम्हारे लौट आने की गुंजाइश तो होती!
पता तो होता!
जहां से तुम्हारे हालात को मंगा सकता
मुझे मालूम है तुम जहां भी हो ठीक नही हो।
सुनो लौट क्यों नही आते?
मेरा भी जी यहां नही लगता सोचता हूँ कहीं दूर बहुत दूर चला जाऊं जहां मिल न सकूँ मैं भी ख़ुद के ढूंढने से
लेकिन तुम्हारी लौट आने की चाहत मुझे बर्बाद किये है शायद!
मैं इसलिए भी नही जाता कि पिछली बार की तरह यह फैसला भी गलत न हो जाए।
एक कमरे में एक ही बिस्तर पर एक ही जिस्म के
दो अजनबी कैसा लगता है?
मुझसे भी तो पूछो न! मुझपे क्या गुजरी है?
आओ झुका के पलके मैं तुम्हारा हाथ थामता हूँ झुक कर और तुम मुझे गले से लगा लो
मैं छुपा लेता हूँ तुम्हारा चेहरा अपने सीने में तुम भी भींच लो मुझे
हम रोते है जार बेजार हो
एक दूसरे के आँशुवों से एक दूसरे के गीले शिकवे धो देतें हैं।
एक दरवाज़ा खोलते है फिर से की खतों का ये सिलसिला खत्म करतें हैं।
हां तुम भी लिखने लगे हो देखा तो नही मगर यकीन है।
उन दिनों तुम्हारे सो के जाने के बाद dustbin में पड़े फटे मोड़े पन्नो को जोड़ जोड़ कर खोल खोल कर पढा था हमने जिसमें भरे शब्दों को पहले तो तुम भर सक कोशिश कर मिटाने या रंग देने की कोशिश करती थी और जब न हो पाता था तो वह पन्ना ही फेंक देती थी। इसलिए की कल सबेरे ही इन्हें घर से फेंक दोगी।
काश की मैं उन पन्नो को तुम्हारे जानने भर में पढ़ा होता फिर भी तुम रुक गई होती
रुक गई होती और आज मुझे रोक रही होती
बहते आँशुवों को रोकने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहती
तुम होती तो यह पन्ना जो कुछ देर पहले तक साफ बेहतर सूखा जवान था
बूढ़ा न हुआ रहता गन्दा न हुआ रहता मरोड़ न आया होता भींगा न होता फटने के कगार पर न होता
लेकिन फटेगा तो नही इसमे तुम्हारा नाम जो है तुम्हारा चेहरा जो है
लेकिन ऐसे ख़त का भी क्या जो तुझ तक न जाए?
थक गया हूँ।।
मेरी तरह यह भी थक गया है हम दोनों ही सोते है बच गए तो एक दूसरे को समेट ही लेंगे
और जानते हो एक बात!
बच जाएंगे तुम्हारे बिन मरा भी तो न जाएगा!!

राजवंशी जे. ए. अम्बेडकर

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