पुरानी किताब जो सुरु हुई थी मगर अभी बन्द है इसी में एक और किताब का नाम है "बंटवारा"
- 【हम सांप हैं सांप】 -
कैसा भी नाम ले लो कोई भी नाम रख लो
घूरा बहारन गोबर शेख मियां मुल्ला समीर बीरबल अब्दुल
यही हैं वो असली वारिश जो अपनी रियासत किसी गैर के हाथों में सौंप गए
कोई शौख से कोई मजबूरन कोई अफवाह में
इस मुल्क से उस मुल्क, उस मुल्क से इस मुल्क के हो गए
उनकी आंखें बंद हो गई वरना पूछता क्यों? क्यों चले गए
क्यो? क्यो पैदा होने दिया हम नालायकों को
अरे पैदा होते ही मार क्यों नही दिया रे
तुम सभी रस्मों रिवाज एक साथ करते रहें सभी एक साथ बैठ कर फैसला करते रहें
फिर क्यों नही कहा कि हमें आज़ादी नही दी जाए
तुम तो पंच परमेश्वर थे न
फिर क्यों हम सांपो को पलने दिया क्यों न पिट पिट कर हमें हमारे रीढ़ के हड्डी को तोड़ दिया
बताओ है जवाब कोई?
अपने पुत्र मोह में हम सांप को पाले
आज देखो हम ही तुम्हारी भतीजी को नंगा करने में लगे हैं तो वही बहारन जो अब्दुल का घर बचाने के लिए खुद को जला लिया था आज उसी की औलाद अपने बाप के भौजाई को रंडी वैश्या कह रहा है।
जिसके दम पर तुम बात बात में लाठी उठा लेते थे आज तुम्हारे बच्चे उसी पे बन्दूक तान देतें हैं।
जिसके आये शेहरी और इफ्तार के इंतजार में तुम खाना नही बनाते थे आज उसी के लड़के तुम्हारे हक़ का भी निवाला छीन लेना चाहतें हैं?
क्यों बोलों हरामजादों कुत्तो क्यो क्यों नही मार दिया हमें!
अरे क्यों चले गए बंटवारे में चुप चाप?
क्यों बहाये तुम अपने ही हाथों अपने भतीजों का खून क्या आज के लिए? यही देखने के लिए
ऐसी ही पाकिस्तान और ऐसे ही भारत के लिए?
अगर कहीं हो तो सुनो डूब मरो। क्योंकि हम ऐसी स्तिथि खड़ी कर रहें हैं जिसमे तुम्हे चैन की मौत भी न आएगी।
हम सांप जो हैं। सांप।
हां हम सांप हैं। सांप।
राजवंशी जे. ए. अम्बेडकर
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