()अभी अभी फ़िल्म "सफर" देख रहा था कमाल की फ़िल्म।(राजेश खन्ना की) लेकिन उस फिल्म में कवि की जो हालात देखा खूब हंसी आई। हंसते हुए कहना चाहता हूँ कि मैं सिर्फ वाहः वाहः के लिए नही लिखता बल्कि कुछ बदले भी कुछ बदलाव भी आए उसके लिए लिखता हूँ।।()
-- 【 तरीख बदल गए।। 】--
तरीख बदलने थे बदल गए
इसमें नया क्या
कुछ भी तो नही
वही बच्चे सड़क के किनारे रेल के पटरियों पर शर्दी में भी नंगे बदन घूमते
घूमते और ढूंढते पानी का वह कतरा
जो नल से नही इन्ही कचड़ों के ढेर में मिलेगा
दो चार बून्द।
जो उनके पेट में लगें आग की सिलवटों पर छन से आवाज कर भाप हो जाएगा।
वह कल फिर निकलेंगे।
फिर से छन के आवाज की चाहत लिए
मजबूरी में
मजबूरी के हद के बाद शौख में
छन के आवाज से आवाज तो होती है भूख तो नही जाती न!
इसी सूरज में जिसे सब नया कह रहे होंगे
उसी हालात में जिसे सब तरोताजा कह के पुकार रहें होंगे
बिलकुल इस तारीख की तरह जिसे सब नया कह रहें
वैसे भई कल भी तो नया ही था
लेकिन वाकई था क्या!
राजवंशी जे. ए. अम्बेडकर
No comments:
Post a Comment