मीना.. यूं तो विदा नही लेना था।

()मीना कुमारी के गम को लिखना आसान नही न ही आसान है मीना कुमारी के मुहब्बत कमाल अमरोही के जज्बात को लिख पाना। वर्ष पहले मीना कुमारी को लिखने के कोशिश में कुछ कुछ लिखा था जैसे "ज़िन्दगी मीना कुमारी सी हो गई है, वक़्त आग से चमकते सोने पर चल रहा है और मैं सोने से चमकते आग पर।" आज की कोशिश है कमाल अमरोही को लिखना। पढ़ें सुझाव दें। वैसे मैं कविता वही समझता हूं जिसमे आग का समंदर हो..फिर वो आग बदलाव की बयार हो या गम का खंजर खुशी का आयाम हो या चेतवानी की ललकार लेकिन हो समंदर। छोटे से छोटे प्याले में भरा समंदर। फिर भी न जाने क्यों ऐसा लगता है मीना कुमार उर्फ मजहबी उर्फ कमाल की मुहब्बत उर्फ दर्द के चहेते कमाल उर्फ मीना के मुहब्बत को लिखने के लिए एक बहुत बड़े पन्ने की जरूरत है। जिसमें आँशुओं का सैलाब छुपाया जा सके। कभी जिन्दगी ने मोहलत दिया मेहरबानी की तन्हाई अकेलपन रुसवाई दर्द ने संवारा तो लिखेंगे तफ्तीश में मीना कमाल के मुहब्बत को या दर्द को!()

मीना..
यूं तो विदा नही लेना था।

दर्द के कब्र पर
पानी का छिड़काव महंगा पड़ा
एक तरफ जहां हम टूट कर रह गए
वही तुमने अपने आप को आँशुओं में कैद कर लिया
हमारी चाहत थी
गेंदे की फूल
फूल तो खिला लेकिन वो निकला भारी भरकम सेमर
दिखावे की दुनिया मे एक और दिखवा
सम्भलना मुश्किल था
हम दो बदन
अलग अलग कमरे कैमरे में कैद तो हो गए
लेकिन रूह!
यह हमबिस्तर ही रही।
फासलें बढ़ते गए या नजदिकियां बढ़ती गई
समझ ही नही आया रौशनी में खेलते खेलते हम कब अंधेरो के महल में आ पहुँचे
चारो तरफ घोर अंधेरा
टूटे फूटे जहां तहां बिखरे सपने
दिल छिल जाएं फिर भी मुस्कुराने का अभिनय करो
हमें इतना भी तो अभिनय नही करना था
मीना..
यूं तो विदा नही लेना था।

राजवंशी जे. ए. अम्बेडकर

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