फरेब

-- 【 फरेब 】 --

जिसपे हम आज कुर्बान है
कल का वही दोखेबाज़ है
हां जिन्दगी है जिन्दगी है हां
यही ज़िन्दगी का असूल है।

वह जो पिलाता है शराब
दरअसल जहर देता है मुझे
फिर भी पी रहें जाने क्यों
यही दुनिया का रिवाज है

उसने किन्हीं और के हाथों से
इसने उसके हाथों से बचाया
कठपुतली बन गए उंगलियों के
धत्त! ये कैसा किसी पर विश्वास है।

खुद मारने की चाह ने वाह! वाह!!
उसने गले लगाए रखा है मुझ को
फरेब न हुआ मृगमारिच हो गया
कमाल का खुदा है लाज़वाब है।

राजवंशी जे. ए. अम्बेडकर

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