-- 【 आओ एक गीत लिखते हैं।। 】--
भुलाया तो नही जा सकता
उन मासूम चेहरों को
उन रूहों को जो हम पे कुर्बान हो गई
उन जिस्मों को जिन्हें हम बचा न पाए
कुछ देह निढाल हो गए
लड़ते लड़ते
जीने की जद्दोजहद में
हम बचे रहें शायद इसलिए कि हम चुप रहें
या फिर इसलिए हमारी बारी अभी तक आई नही थी
खुश थें हम बहुत
बरस रहें बेबस आँशु में
हमें भनक भी न हुई जेठ के बरसात की
जिन्हें हम बादलो के गर्जन समझे मस्ती में डर रहे थें
दरअसल वह थी चीख बर्बस हताश मदद मांगती पुकार
लेकिन हम मदमस्त थें
वह काली रात जो हुई थी सुबह सुबह
मेरे पड़ोस में
हम क्यों जलाते दिये
हमारे यहां तो दोपहर थी
धूप थी
बचने के लिए जिससे हमने अपने मन के
खिड़कियों को बंद कर रखा था
बहरे तो नही थे
लेकिन उन शब्दों को सुनना छोड़ दिया
इसलिए न
आज हम जिंदा है
वरना मर न गए होते! अपने ही पश्चताप में
शर्म से क्या हम खुद ही अपने रूह को अपने जिस्म से जुदा न कर दिए होतें?
या फिर बोले ही होते!
खैर,
आओ गीत लिखते हैं
एक प्यारा सा
जिसे हम पूरा कर लेंगे मरने से पहले
जिसे गुनगुना लेंगे मरने से पहले
जिसे सुना लेंगे मरने से पहले
लेकिन सुनेगा कौन? जिसके घर कल काली रात थी
आज की काली रात तो उसके घर भी सबेरा है
वहा भी तो कड़ी धूप होगी
वह भी तो बन्द कर लिया होगा
अपना दरवाज़ा
अपनी खड़िकियाँ
अपने कमरे में बचा रहा होगा
न जाने किसे!
जिसे भी।
लेकिन हमारी तो नही सुनेगा न..
राजवंशी जे. ए. अम्बेडकर
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