()हमारे मकानों के हर ईंट पर गम लिखा गया जिसे मैंने चुम चुम कर मुस्कुराहटों में बदल दिया। मेरे प्यारे दुश्मनों अब विकल्प ही मुस्कुराना बचा है तो क्या कीजिए!☺️()
सहर्ष स्वीकार्य
हर उदासी
हर धूप
जिस में जल कर
काला होता तन
मन को चन्दन कर देगा
इस उम्मीद के किरण में
हर जीव जंत
अपना सर्वस्व
न्योछावर कर रहा
लेकिन क्या सभी
प्राप्त कर पाएंगे
असीमित ब्रह्मांड को
क्या सभी ग्रहण कर पाएंगे
जीवन के तेज को
लालसा से भरी
हर प्रगति तो ठीक है
लेकिन लालच से भरी!
क्या इस भूख का कोई अंत है?
सब कुछ जल कर कालिख हो जाना है
एक न एक दिन
लेकिन सवाल यहां यह भी है
ब्रह्मण्ड पर विजय प्राप्त कर लेना वाला
जिसे अब
एक और अधिक कण का मोह नही
क्या वह नही मिलेगा राख में!
और जब सभी का अंत एक ही
एक ही मिट्टी में मिल जाना
तो फिर
अच्छे बुरे का इतना हाय हाय क्यों?
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