धत्त

-- 【 धत्त 】 --

शहर के बीच चौराहें से
गुजरते हुए अक्सर मैं
आपही में झेंप जाता हूँ
वही जहां फूल बिक़तें
और बिकता है गजरा
छोटे छोटे रजनीगंधा
सफेद सफेद खुशबूदार
नेह बन्धन के ताबीज
कैसे ख़िरीदते होंगे?
मैं क्या कह लूंगा
कैसे छिपा कर सबसे
जड़ दूंगा तुम्हारे माथे
और तुम धत्त करोगे
हर रोज, रोज - रोज
डर लगता है थोड़ा
वरना पूछता झेल लोगे!
इतना सा बस मुझे
हां, तुम हां कहते
मिटा के फासले सब
मैं भी जो दबा के होंठ
लाल गाल को छिपा
निकल जाता हूँ यहाँ से
रुकता थोड़ी सी देर
थोड़े ही पल में बुनता
यो लम्बे लम्बे ख्याब
फिर छुपा कर लाता
छींटों में सजे खुशबू
तुम्हारे धत्त को सुनने।।

Jyotiba Ashok

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