बेवजह ही झेली जातीं हैं सभी रंजो-ओ-ग़म..
जरूरत के सभी हैं, ऐसे कोई किसी का नही।।

करते हो वफ़ा हर बार क्या कोई फ़रिश्ता हो.!
तुम ही हो गुनहगार यहां दोष जमाने का नही।।

नमक सा डालो फरेब को मगर डालो जरूर..
यह मुहब्बत का असुल है, दर ख़ुदा का नही।।

ठहाके लगाओ कहकहे भरो जश्न मनाओ, की..
टांके पड़े होंठों का खिलना, किसी काम का नही।।

तुम्हारे लिए चली तलवारें तुम्ही पे चलतीं है अब
'थें' सभी दोस्त तुम्हारे, तुम्हारे तंग दिनों का नही।।

या हो जाओ पत्थर या मर ही जाओ 'सुल्तान'..
इस सूखे पड़े समंदर से उम्मीद बरसात का नही।।

Jyotiba Ashok

((आज कल बहुत व्यस्त हैं तो फेसबुक पे कम ही आना जाना रहेगा।।))

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