सौ टुकड़ें हैं दिल के, बोलो जानेमन तुम्हें कौन सा चाहिए
या है पसन्द कुछ और, कहो तो और कितने टुकड़े करूँ!
कफ़न की जद्दोजहद ने मोह्हबत पर मोहब्बत करा दिया
मिलेगी मौत -ए- मंजिल, कहो तो और कितने वफाये करूँ!
दागदार है जिस्म, रूह आग के भट्ठे में बेसुध पड़ी है
फिर भी हंसे जा रहे, कहो तो और कितने पर्दे करूँ!
दोस्तों उफ्फ न करेंगे, अलबत्ता मिले घावों को सलाम
दुश्मनों जरा सा ठहरों, कहो तो और कितने वादे करूँ!
उखड़ रही सांस जरा कब्र तक धकेल देना "सुल्तान"
दो कांधे हैं ही अपने, कहो तो और कितने कांधे करूँ!
Jyotiba Ashok
((इसमें कुछ कमी कमी सा लग रहा ,, खैर फिर भी आपके खिदमत में हाजिर है😊))
No comments:
Post a Comment