समझना मुझे

((किसी से माफी की गुजारिश थी खुल के कहना भी नही।।))

-- 【 समझना मुझे 】 --

उसे नाराज नही करना था
लेकिन करता भी तो क्या
उसे सपने दिए उम्मीद दी
हक़ीक़त के लिए उकसाया
छेड़ा खुरेदा भरोषा दिया
उसकी ना में हां भरी हमनें
एक यकीन दिया जीत का
वादा था, विजय पताका का
मैं यह सब किया उसके साथ
लड़ कर दुलार कर तैयार किया
एक दिन अचानक से मैं
चुप हो गया, करा दिया गया।
जब वह दौड़ सकता था
मैं बैठ गया शांत पड़ गया
उसके सवालों से बचने लगा
मझदार में छोड़ उसे, मैं
अचानक से एकदम ठिठक गया
वह घूरता रहा दुखता रहा
मारा मुझे पुकारा दुत्कारा
लेकिन मैं जैसे जम गया था
कहता भी क्या! था तो बहोत
लेकिन सब पी गया जैसे भी
रोते हुए आंखों से होंठ को खींचे
उसके गुस्से में खुद को दबाये
कभी कभी अनयास ही सोचता हूँ
मुझे उसे नाराज नही करना था।
कुछ कह ही देना था कुछ भी
वो सुनता न सुनता, समझता या न
मन थोड़ा हल्का तो रहता
मन यह कहता तो समझना मुझे।।
खैर अब भी कभी समझना मुझे।।

Jyotiba Ashok

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