ख़त 16

-- 【ख़त 16】 --

कल तुम्हारी तस्वीर देखी
दुल्हन के जोड़े में
बहोत सारे गहनों से लदी
मंद मंद मुस्कुराहटों के बीच अपनी उत्सुक्ता को छिपाते
शर्मा रही थी तुम
बहोत खूबसूरत लग रही थी।
मगर मैं गुस्से में था
लेकिन किसपर नाराज होता!
तुम्हारे बाद 'मैं' भी लापता हूँ।
आज यह पहली दफा है
जब मैं तुमसे ज्यादा किसी और को देख रहा हूँ
जब मैं तुमसे ज्यादा किसी और को सोच रहा हूँ
'तुम्हारे साथ वाले को'
घण्टों घण्टों से देख रहा
कभी उसके चेहरें को कोसता हूं
कभी उसकी किस्मत को दुआओं से भर देता हूँ
दिमाग सन्न है या मुझे कुछ और हुआ है?
तुम अच्छी भी लग रही हो और मुझे कुछ भी अच्छा नही लग रहा
बदसूरत चाँद
बेसुरे पंक्षी
बेअसर सिगरेट
क्या यह सब भी रख ले जाओगी अपने संग
जैसे तुम मुझे मुझमें से ले कर चली गई!
फिर किसे सुनते हुए, किसे देखते हुए, किसे होंठो से लगाएं अपनी उंगलियों में फँसाये कैसे तुम्हें लिख पाऊंगा!
यह सब न होंगे तो कौन मुझे रुलाएंगे!
अब डर लगता है कभी कभी
कहीं तुम्हें भूल तो नही रहा न!
कहीं तुम्हें भूल तो न जाऊँगा न!
जैसा तुमने कहा था
'एकदिन सब ठीक हो जाएगा
एकदिन तुम नई शुरुवात करोगे
एकदिन जब हम मिलेंगे हम दोस्त होंगे
एकदिन, एकदिन तुम मुझे भुला दोगे'
डर लगता है.. डर लग रहा है..
याद आते रहना.. कभी तो हाल पूछ जाना..
मैं लिखता रहूंगा युही
'तुम्हें'
तुम तक न पहुँचने वाले खतों को।।

J❤️

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